स कुक्षौ वृषभो दृष्टिं प्रणिधाय धृतानन:।
कृष्णस्य निधनाकांक्षी तूर्णमभ्युत्पपात ह।।16।।
तमापतन्तं वेगेन प्रतिजग्राह दुर्द्धरम्।
कृष्ण: कृष्णांञ्जननिभो वृषं प्रति वृषोपम:।।17।।
स संसक्तस्तु कृष्णो वै वृषेणेव महावृष:।
मुमोच वक्त्रजं फेनं नस्तश्चाथ सशब्दवत्।।18।।
तावन्यान्यावरुद्धांगौ युद्धे कृष्णवृषावुभौ ।
रेजतुर्मेघसमये संसक्ताविव तोयदौ।।19।।
तस्य दर्पबलं हत्वा कृत्वा श्रृंगान्तरे पदम्।
आपीडयदरष्टिस्य कण्ठं क्लिन्नमिवाम्बरम्।।20।।