हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 15 श्लोक 11-15

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 15 श्लोक 11-15

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नासस्‍या नातृणा भूमिर्न बुभुक्षार्दितो जन:।
दृश्‍यते यत्र दृश्‍यन्‍ते वृष्टिमन्‍तो बलाहका:।।11।।

दुदोह सवितुर्गा वै शक्रो दिव्‍या: पयस्विनी:।
ता: क्षरन्ति नवं क्षीरं मेध्‍यं मेघौघधारितम्।।12।।

वाय्वीरितं तु मेघेषु करोति निनदं महत् ।
जवेनावर्तितं चैव गर्जतीति जना विदु:।।13।।

तस्‍य चैवोह्यमानस्‍य वायुयुक्‍तैर्बलाहकै:।
वज्राशनिसमा: शब्‍दा: श्रूयन्‍ते नगभेदिन:।।14।।

तज्‍जलं वज्रनिष्‍पेषैर्विमुंचिति नभोगतै:।
बहुभि: कामगैर्मेघै: शक्रो भृत्‍यैरिवेश्‍वर:।।15।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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