हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 126 श्लोक 111-115

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 126 श्लोक 111-115

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चक्रोद्यतकरं दृष्ट्वा भगवन्तं‍ रणाजिरे।
अन्तोर्धानमुपागम्यव त्येज्यण सा वाससी पुन:।।111।।

परित्राणाय बाणस्यन विजयाधिष्ठिता तत:।
प्रमुखे वासुदेवस्यम दिग्वािसा: कोटवी स्थिता।।112।।

तां दृष्ट्वा थ पुन: प्राप्तांज देवीं रुद्रस्य् सम्मताम्।
लम्बाृद्वितीयां तिष्ठ न्तींत कृष्णोव वचनमब्रवीत्।।113।।

भूय: सामर्षताम्राक्षी दिग्वयस्त्रा वस्थिता रणे।
बाणसंरक्षणपरा हन्मि बाणं न संशय:।।114।।

एवमुक्ता तु कृष्णेंन भूयो देव्यब्रवीदिदम्।
जाने त्वांप सर्वभूतानां स्त्रेष्टा रं पुरुषोत्तेमम्।
महाभागं महोदवमनन्तं नीलमव्यतयम्।।115।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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