हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 122 श्लोक 76-80

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 122 श्लोक 76-80

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इत्येवमुक्वातं प्रहसन् हलायुधमुपाद्रवत्।
युगान्ता‍ग्निनिभैर्घोरैर्मुष्टिभिर्जनयन् भयम्।।76।।

चरतस्तंत्र संग्रामे मण्डलानि सहस्रश:।
रौहिणेयस्य शीघ्रेण नावस्थानमदृश्यत।।77।।

तस्यण भस्म तदा क्षिप्तं ज्वतरेणाप्रतिमौजसा।
शैघ्रयाद् वक्षो निपतितं शरीरे पर्वतोपमे।।78।।

तद् भस्म् वक्षसस्तस्य मेरो: शिखरमागतम्।
प्रदीप्तं पतितं तत्र गिरिश्रृंगं व्यदारयत्।।79।।

शेषेण चापि जज्वाल भस्मना कृष्णपूर्वज:।
नि:श्वासंजृम्म्माणश्च् निद्रान्विततनुर्भृशम्।।80।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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