हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 121 श्लोक 31-35

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 121 श्लोक 31-35

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इदं तु सुमहत कष्टं प्राद्युम्नि: क्व: प्रवासित:।
एवंविधमहं दोषं न स्मिरे मनुजर्षभा:।।31।।

भस्मिना गुण्ठित: पादो येन मे मूर्ध्नि पातित:।
तस्याहं सानुबन्धस्य हरिष्ये जीवितं रणे।।32।।

इत्येवमुक्ते कृष्णेन सात्यकिर्वाक्यमब्रवीत्।
चारा: कृष्ण् प्रणीयन्तामनिरुद्धस्य मार्गणे।

सपर्वतवनोद्देशां मार्गन्तु वसुधामिमाम्।।33।।

आहुकं प्राह कृष्णमस्तु स्मितं कृत्वा‍ वचस्तदा।
आभ्यंन्तराश्च बाह्याश्च व्यादिश्यंन्तां चरा नृप।।34।।

वैशम्पायन उवाच
केशवस्य् वच: श्रुत्वा आहुकस्वरितोऽभवत्।
अन्वे्षेणेनिरुद्धस्यच स चारान् दिष्ट्वांस्तदा।।35।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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