हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 119 श्लोक 121-125

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 119 श्लोक 121-125

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तैरेव च तदा युद्धे ताञ्जघान महाबल:।
पुन: परिघमुत्सृज्य प्रगृह्य रणमूर्धनि।।121।।

स तेन विचरन् मार्गानेक: शत्रुनिबर्हण:।
भ्रान्त मुद्भ्रान्तगमाविद्धमाप्लुतं विप्लुतं प्लुतम्।।122।।
इति प्रकाराद् द्वात्रिंशद् विचरन्ना्भ्यादृश्यत।

एकं सहस्रशश्चात्र ददृशू रणमूर्धनि।।123।।
क्रीडन्तं बहुधा युद्धे व्यादितास्यमिवान्त‍कम्।

ततस्ते्नाभिसंतप्ता रुधिरौघपरिप्लुता:।।124।।
पुनर्भग्ना: प्राद्रवन्त यत्र बाणो व्यतस्थित:।

गजवाजिरथौघैस्ते चोह्यमाना: समन्तत:।।125।।
कृत्वा चार्तस्वरं घारें दिशो जग्मुर्हतौजस:।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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