हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 118 श्लोक 76-80

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 118 श्लोक 76-80

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अन्तरिक्षचरा च त्वं योगिनी कामरूपिणी।
उपायस्या‍स्य कुशला क्षिप्रमानय मे प्रियम्।।76।।

उपायश्चिन्यतां भीरु सम्प्रतर्क्य प्रिये सुखम्।
सिद्धार्था संनिवर्तस्वं येनोपायेन सुन्दरि।।77।।

भवेदापत्सु यन्मित्रं तन्मित्रं शस्याते बुधै:।
कामार्ता चास्मि सुश्रोणि भव मे प्राणधारिणी।।78।।

यद्येनं मे विशालाक्षि भर्तारममरोपमम्।
अद्य नानयसि क्षिप्रं प्राणांस्त्यक्ष्याम्यहं शुभे।।79।।

उषाया वचनं श्रुत्वा चित्रलेखा ब्रवीद् वच:।
श्रोतुमर्हसि कल्याणि वचनं मे शुचिस्मिते।।80।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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