हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 118 श्लोक 51-55

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 118 श्लोक 51-55

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सा तच्छुत्वा‍ तु वचनमुषाया: परिकीर्तितम्।
आश्वा्सयामास सखी बाणपुत्रीं यशस्विनीम्।।51।।

तत: सा विस्मयाविष्टा वचनं प्राह दुर्वचम्।
चित्रलेखामप्सारसं प्रणयात् तां सखीमिदम्।।52।।

परमं श्रृणु मे वाक्यं यत् त्वां वक्ष्यामि भामिनि ।
भर्तारं यदि मेऽद्य त्वंं नानयिष्यसि मत्प्रियम्।।53।।

कान्तंं पद्मपलाशाक्षं मत्तमातंगगामिनम्।
त्यक्ष्याम्यहं तत: प्राणनचिरात तनुमध्य मे।।54।।

चित्रलेखाब्रवीद् वाक्यमुषां हर्षयती शनै:।
नैषोऽर्थ: शक्य‍तेऽस्माभिर्वेत्तुं भामिनि सुव्रते।।55।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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