हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 117 श्लोक 46-50

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 117 श्लोक 46-50

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राजपुत्री यदा देवि समायाता गृहे सती।।46।।
जलक्रीडाविहाराच्च मूकेव परिलक्ष्यते।
अतो दासीजना देवि वदामस्त्वां वयं जना:।।47।।

को मोह: किमिदं मौनं क: स्वापो म्लानता कथम्।
विचार्य भिषजो देवि दिश्यदन्तां कष्ट‍शान्तये।।48।।

शिरीषपुष्पसदृशं यच्छरीरं सुकोमलम्।
तत् कथं सहते देवि व्याधिभारं वरानने।।49।।

इति श्रुत्वा तदा देवी सत्त्व‍रा हंसगामिनी।
प्राप्य देशमुषा यत्र किमिदं कष्टधलक्षणम्।।50।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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