हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 116 श्लोक 16-20

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 116 श्लोक 16-20

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अथ बाणोऽब्रवीद् वाक्यं देवदेवं महेश्वरम्।
देव्या: पुत्रत्वमिच्छामि त्व‍या दत्तं त्रिलोचन।।16।।

शंकरस्तु‍ तथेत्युंक्वादे रुद्राणीमिदमब्रवीत्।
कनीयान्‍ कार्तिकेयस्यय पुत्रोअयं प्रतिगृह्यताम्।।17।।

यत्रोत्थितो महासेन: सोअग्निजो रुधिरे पुरे।
तत्रोद्देशे पुरं चास्ये भविष्यधति न संशय:।।18।।

नाम्ना तच्छोंणितपुरं भविष्यति पुरोत्तमम्।
मयाभिगुप्तं श्रीमन्तं न कश्चित् प्रसहिष्यति।।19।।

तत: स निवसन् बाण: पुरे शोणितसाह्वये।
राज्यं प्रशासते नित्यं क्षोभयन् सर्वदेवता:।।20।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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