हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 101 श्लोक 41-45

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 101 श्लोक 41-45

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सुनामानममित्रघ्न: सर्वसैन्यंपुरस्कृतम्।
वृकैर्विद्रावयामास ग्रहीतुं समुपस्थितम्।।41।।

रौहिणेयेन संगम्य वने विचरता पुन:।
गोपवेषधरेणैव कंसस्य भयमाहितम्।।42।।

तथा व्रजगत: शौरिर्दृष्ट्वा युद्धबलं हयम्।
प्रग्रहं भोजरास्य जघान पुरुषोत्त‍म:।।43।।

प्रलम्बंश्च‍ महाकायो रौहिणेयेन धीमता।
दानवो मुष्टिनैकेन कंसामात्यो निपातित:।।44।।

एतौ हि वसुदेवस्य पुत्रौ सुरसुतोपमौ।
ववृधाते महावीर्यौ ब्रह्मगार्ग्येण संस्कृतौ।।45।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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