हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 94 श्लोक 41-51

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: चतुर्नवतितम अध्याय: श्लोक 41-51 का हिन्दी अनुवाद

देवता सदा सत्‍य में तत्‍पर होते हैं तो महान असुर असत्‍य में। जहाँ धर्म, तप और सत्‍य होता है, उसी पक्ष को युद्ध में निश्चित रूप से विजय प्राप्‍त होती है। अत: तुम दोनों भी दो सुयोग्‍य देवकुमारों का वरण कर लो। पति की प्राप्ति कराने वाली यह विद्या मैं तुम्‍हें देती हूँ। तुम मेरे प्रभाव से तत्‍काल ही अभीष्‍ट पति प्राप्‍त कर लोगी।' तब वे दोनों बहनें अत्‍यन्‍त हर्ष में भरकर चारुलोचना प्रभावती से बोलीं- ‘बहुत अच्‍छा’। तदनन्‍तर पति को आदर देने वाली प्रभावती ने प्रद्युम्न से उस कार्य के विषय में पूछा। प्रद्युम्‍न ने उस समय अपने चाचा वीरवर गद और भाई साम्ब का नाम बताया और कहा- ‘वे दोनों सुन्‍दर रूप वाले, सुशील तथा युद्धकर्म में शूरवीर है’। तब प्रभावती अपनी दोनों बहनों से बोली- 'पूर्वकाल में सेवा से संतुष्‍ट हुए दुर्वासा मुनि ने मुझे यह विद्या दी थी; साथ ही अखण्‍ड सौभाग्‍य तथा सदकन्‍या जैसी बनी रहने का वरदान दिया। उन्‍होंने यह भी कहा था कि तुम देवता, दानव तथा यक्षों में से जिसका चिन्‍तन करोगी, वही तुम्‍हारा पति होगा। उनके इस वरदान के अनुसार मैंने इन्‍हीं वीर प्रद्युम्‍न को अपना पति बनाने की इच्‍छा की।

अत: तुम दोनों ही इस विद्या को ग्रहण करो। इससे तुम्‍हें तत्‍काल ही प्रियतम का समागम प्राप्‍त होगा।' यह सुनकर हर्ष में भरी हुई उन दोनों बहनों ने बहन प्रभावती के मुख से वह विद्या ग्रहण की। उन शुभलक्षणा कन्‍याओं ने विद्या का अभ्‍यास करके गद और साम्‍ब का ध्‍यान किया; फिर तो वे दोनों यादवकुमार गद और साम्‍ब प्रद्युम्‍न के साथ ही उस महल में प्रविष्‍ट हुए। नरेश्‍वर! मायावी प्रद्युम्‍न ने अपनी माया से उन दोनों वीरों को छिपाकर वहाँ उपस्थित किया था। शत्रुसेना का संहार करने वाले उन दोनों वीरों ने भी गान्‍धर्व विवाह की विधि से मन्‍त्रोच्‍चारणपूर्वक उन कन्‍याओं का पाणिग्रहण किया। वे दोनों ही सत्‍पुरुषों के प्रिय थे। चन्‍द्रवती के साथ गद और गुणवती के साथ केशवकुमार साम्‍ब का विवाह हुआ। इस तरह वे तीनों यदुपुंगव वीर उन दिनों इन्‍द्र और श्रीकृष्‍ण के आदेश की प्रतीक्षा करते हुए उन असुर कन्‍याओं के साथ रमण करने लगे।

इस प्रकार श्रीमहाभारत खिलभाग हरिवंश के अन्‍तर्गत विष्‍णु पर्व में प्रभावती का पाणिग्रहणविषयक चौरानबेवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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