हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: षडशीतितम अध्याय: श्लोक 47-63 का हिन्दी अनुवाद
महादेव जी से सुरक्षित होने के कारण वे सभी प्राणियों के लिये अवध्य हैं। वहाँ मन्दार-वृक्षों के बगीचों में उमा सहित सर्वात्मा सर्वभावन महादेव जी नित्य क्रीड़ा करते ओर अपने पार्षदों के साथ रहते हैं। कश्यपकुमार! विशेष तपस्या के द्वारा तीनों लोकों के स्वामी भगवान शिव की आराधना करके ही ये मन्दार पुष्प प्राप्त किये जा सकते हैं। वे सभी वृक्ष भगवान शंकर के प्रिय हैं और स्त्रीरत्न, मणिरत्न तथा अन्य जो-जो अभिलाषित पदार्थ हैं, उन सबको वे फल स्वरूप से प्रस्तुत करते हैं। अतुल पराक्रमी दैत्य! वहाँ मन्दार वन में न तो सूर्य तपते हैं और न चन्द्रमा ही प्रकाश करते हैं। मन्दार-वृक्षों से भरा हुआ वह वन स्वयं अपनी ही प्रभा से प्रकाशित होता है। वहाँ दु:ख-शोक का प्रवेश नहीं है। महाबली अन्धक! वहाँ कुछ वृक्ष ऐसे हैं, जो उत्तम सुगन्ध उत्पन्न करते हैं, दूसरे विशाल वृक्ष जल प्रकट करते हैं तथा अन्य वृक्ष नाना प्रकार के सुगन्धित वस्त्र प्रदान करते हैं। इतना ही नहीं, उन वृक्षों से भाँति-भाँति के मनोवांछित भक्ष्य, भोज्य, पेय, चोष्य और लेह्य आदि पदार्थ प्राप्त होते हैं। निष्पाप वीर! तुम यह समझ लो कि उस मन्दार वन में भूख-प्यास, ग्लानि अथवा चिन्ता भी नहीं फटकने पाती है। वहाँ स्वर्ग से कई गुने उत्तम जो गुण दिनों दिन बढ़ते हैं, उनका सैकड़ों वर्षों में भी वर्णन नहीं किया जा सकता। दैत्यप्रवर! जो वहाँ एक दिन भी निवास कर लेगा, वह महेन्द्र सहित सम्पूर्ण लोकों पर अतिशय विजय प्राप्त कर लेगा, इसमें संशय नहीं है। वह स्वर्ग का भी स्वर्ग और समस्त सुखों का भी सुख है। मेरे मन का तो ऐसा विश्वास है कि वही सम्पूर्ण जगत का सर्वस्व-सार है।' इस प्रकार श्रीमहाभारत के खिलभाग हरिवंश के अन्तर्गत विष्णु पर्व में अन्धक वध विषयक छियासीवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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