हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: द्वयशीतितम अध्याय: श्लोक 21-35 का हिन्दी अनुवादयदि मोहवश किसी तरह ब्राह्मणों की हत्या करोगे तो नष्ट हो जाओगे, क्योंकि ब्राह्मण जगत् के परम आश्रय हैं। ब्राह्मणों का अहित करने वाले पुरुषों को भगवान नारायण से डरना चाहिये। क्योंकि वे भगवान जनार्दन समस्त भूतों के प्रति हित-बुद्धि रखते हैं।' राजन! ऐसा कहकर ब्रह्मा जी के विदा देने पर वे असुर चले गये तथा जो दूसरे असुर धर्माचरण में तत्पर रहने वाले और महादेव जी के भक्त थे, उन्हें त्रिपुरविनाशन भगवान महादेव जी ने उमा सहित श्वेत वृषभ पर आरूढ़ होकर अपने पार्षदों के साथ आ स्वयं ही दर्शन दिया तथा सत्पुरुषों के आश्रयभूत उन भगवान शिव ने उन असुरों से इस प्रकार कहा- 'असुरशिरोमणियों! तुमने वैर, दम्भ और हिंसा का परित्याग करके जो केवल मेरा ही आश्रय लिया है, इससे मैं तुम्हारे लिये श्रेष्ठ वर प्रदान करता हूँ। जिन सत्कर्म परायण ब्रह्मर्षियों ने तुम्हें मेरी भक्ति की दीक्षा दी है उनके साथ ही तुम सब लोग स्वर्गलोक में चले जाओ। मैं तुम्हारे सत्कर्म से बहुत प्रसन्न हूँ। जो ब्रह्मवादी तापस इस कपित्थ वृक्ष के पास निवास करेंगे, वे कापित्थिक कहलायेंगे और उन्हें मेरे समान लोक प्राप्त होगा। तपोधनों! जो मनुष्य अमावस्या और पूर्णिमा के दिन वानप्रस्थ विधि से मेरी पूजा करता हुआ यहाँ निवास करेगा, वह सहस्र वर्षों तक तपस्या करने का फल पा लेगा तथा विधिपूर्वक तीन रात तक निवास करने से उसको मनोवांछित गति प्राप्ति होगी। अर्कद्वीप में निवास करने वाले को उससे दूना फल मिलेगा। परंतु दूर देश में निवास करने पर तुम्हारा भला नहीं होगा। यह वर मैं दे रहा हूँ। जो श्वेतवाहन नाम से मेरी पूजा करेगा, वह सब ओर से भयभीत-चित्त होने पर भी मेरी ही गति को प्राप्त होगा। जो मनुष्य औदुम्बर[1], बाटमूल[2], कापित्थिक[3], सृगाल[4] धर्मात्मा का दृढ़व्रत एवं ब्रह्मवादी मुनियों का सदा विशेष-रूप से पूजन करेंगे, वे मनोवांछित गति को प्राप्त होंगे।' ऐसा कहकर भगवान श्वेतवाहन महादेव उन सबके साथ रुद्रलोक में चले गये। 'मैं जम्बू-मार्ग को जाऊँगा, मैं जम्बू-मार्ग पर निवास करूँगा’ इस तरह मन में संकल्प करने वाला मनुष्य भी रुद्रलोक में प्रतिष्ठित होता है। इस प्रकार श्रीमहाभारत के खिलभाग हरिवंश के अन्तर्गत विष्णु पर्व में षट्पुरवधविषयक बयासीवां अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ उदुम्बर (गूलर) वृक्ष का आश्रय लेकर रहने वाले मुनि की औदुम्बर संज्ञा है।
- ↑ वटवृक्ष की जड़ में निवास करने वालों को वाटमूल कहा गया है।
- ↑ कपित्थ वृक्ष का आश्रय लेने वाले कापित्थिक कहलाते हैं।
- ↑ सृगाल नामक वृक्ष की वाटिका में वास करने वाले को सृगालवाटीय कहा गया है।
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