हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 65 श्लोक 34-50

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: पञ्चषष्टितम अध्याय: श्लोक 34-50 का हिन्दी अनुवाद


देवराज इन्द्र की माता अदिति, देवेन्द्रपत्नी शची, देवमाता सावित्री, सर्वगुणसम्पन्ना लक्ष्मी तथा अन्य देव-पत्नियां, देवगण और वसु देवता- ये सब इस पुष्प को धारण करते हैं। उन सबके लिये भी इस पुष्प के धारण का अधिक-से-अधिक समय तक वर्ष तक ही है। इसमें संशय नहीं है- भोजनन्दिनी! आज मुझे मालूम हो गया कि इन सोलह हजार स्त्रियां के बीच भगवान वासुदेव को तुम्हीं सबसे अधिक प्रिय हो। सर्वेश्वर प्रिये! सद्गुणवती भामिनी! आज तुमने अपनी सारी सौतों को अपमान के जल से सींच दिया। आज तुम्हारा अनिवार्य सौभाग्य और यश प्रकाश में आ गया, तुम्हारा भगवान मधुसूदन ने यह मन्दार-पुष्प केवल तुम्हारे हाथ में दिया है। आज सत्राजित की पुत्री परम सुन्दरी सती सत्यभामा देवी, जो अपने-आपको सदा सबसे अधिक सौभाग्यशालिनी एवं सुभगा समझती रही हैं, जान लेंगी कि किसका सौभाग्य अधिक है। साम्बमाता जाम्बवती तथा गान्धारी आदि, जो महात्मा श्रीकृष्ण की अन्य पत्नियां हैं, वे आज नि:स्पृह होकर सौभाग्य के लिये उठी हुई आकाशगंगा का परित्या‍ग कर देंगी। देवि! आज तुम्हारे सौभाग्य का एकमात्र विजयशील रथ बाहर निकलाता है, जो सहस्रों मनोरथरुपी रथों के लिये दुर्जय हैं।

सर्वांगसुंदरी भामिनी! आज मैं सर्वथा इस बात को समझ गया कि श्रीकृष्ण की दूसरी आत्मा तुम्हीं हो। हरिप्रिये! तीनों लोकों के रत्नों का सर्वस्वरूप यह पारिजात-पुष्प भगवान श्रीकृष्ण ने जो तुम्हें ही दिया है, इससे तुमने आज प्राणों से भी अधिक उत्कृष्ट वस्तु प्राप्त कर ली है (अथवा तुम्हें आज समस्त सौभाग्यवती स्त्रियों की अपेक्षा उत्कृष्ट जीवन प्राप्त हुआ है)।' नरेश्वर! सत्यभामा की भेजी हुई दासियां वहाँ खड़ी थीं। उन्होंने नारद जी के द्वारा इस प्रकार कहे गये यथार्थ वचनों को सुना। प्रजानाथ! अन्य देवियां तथा पत्नियों की दासियां भी वहाँ खड़ी थीं।

उन सबको देखकर नारद जी ने उपर्युक्त बातें और भी बढ़ा-चढ़ाकर कही थीं। उस समय वे सारी बातें सुनकर उन दूतियों ने स्त्री स्वभाव के कारण भगवान श्रीकृष्ण के अन्त:पुर में उन्हें प्रकट कर ही दिया। कानों कान वह सब जानकर श्रीकृष्ण की अन्य पत्नियां झुंड-की-झुंड एकत्र हो हर्ष में भरकर रुक्मिणी के अत्यन्त गुणयुक्त सौभाग्योदय की चर्चा करने लगीं, मानो कुल के किसी गुढ़ रहस्य पर गुप्त मन्त्रणा कर रही हों। हर्ष से उत्फुल हुर्इ दामोदर की वे स्त्रियां एकत्र होकर प्राय: इस प्रकार कहने लगीं कि वे (रुक्मिणी) हम सब लोगों की पूजनीया हैं, ज्येष्ठ पुत्र की माता हैं और स्वयं भी ज्येष्ठा है परंतु अतुल तेजस्वी श्रीकृष्ण की नित्य प्रिय सत्यभामा पर गर्व था, अत: अभिमानिनी देवी सत्यभामा सौत के अभ्युदय का समाचार सुनते ही ईर्ष्या के वशीभूत हो गयीं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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