हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 56 श्लोक 27-35

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: षट्पंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 27-35 का हिन्दी अनुवाद


वहाँ पास ही रैवतक नाम से प्रसिद्ध पर्वत था, जिसके शिखर मन्दराचल के समान ऊँचे और रमणीय थे। वह पर्वत सब ओर से बड़ी शोभा पा रहा था। वहाँ एकलव्य रहता था। आचार्य द्रोण भी वहाँ दीर्घकाल तक निवास कर चुके थे। बहुत-से मनुष्य वहाँ आते-जाते थे तथा वह पर्वत सब प्रकार के रत्नों से व्याप्त था। उसके पास ही उस राजा रेवत की विहारभूमि थी, जिसका बड़े सुन्दर ढंग से निर्माण किया गया था। उस भूमि का नाम द्वारवती, जो विशाल होने के साथ ही शतरंज या चौसर की बिछाँत के समान चौकोर थी।

भगवान श्रीकृष्ण ने वहाँ नगर बसाने का विचार किया। यादवों को भी वहाँ सेना का पडाव डालना जंच गया। दिन में जबकि सूर्य पर लाली छा रही थी, वहाँ श्रेष्ठ यादवों ने सेना के रक्षक नियुक्त किये और सैनिकों के ठहरने के लिये छावनियां तैयार करायीं। यदुप्रवर भगवान श्रीकृष्ण ने यादवों के साथ उस प्रदेश में एक सुस्थित नगर बसाने के लिये निवास किया। गद के बड़े भाई यादव श्रेष्ठ पुरुषोत्तम ने मानसिक संकल्प के द्वारा उस पुरी का नाम निश्चित किया और मन से ही विधिपूर्वक उसमें गृहों का विभाग किया।

राजन! इस प्रकार बन्धु-बान्धवों सहित यदुवंशी द्वारकापुरी में पहुँचकर वहाँ उसी तरह सुख से रहने लगे, जैसे देवता स्वर्ग में रहते हैं। केशिहन्ता‍ श्रीकृष्ण भी कालयवन का आना जानकर उसके और जरासंध के भय से द्वारकापुरी को चले गये।

इस प्रकार श्रीमहाभारत खिलभाग हरिवंश के अन्तर्गत विष्णु पर्व में श्रीकृष्ण सहित यादवों का द्वारकापुरी को प्रयाणविषयक छप्पानवां अध्याय पूरा हुआ ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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