हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 35 श्लोक 92-111

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: पञ्चत्रिंश अध्याय: श्लोक 92-111 का हिन्दी अनुवाद


साथ ही क्रोधपूर्वक गदा का प्रहार करके महाबली वीर मगधराज जरासंध ने उनके घोड़ों को काल के गाल में भेज दिया, फि‍र बलराम जी पर धावा किया बलराम जी भी मूसल लेकर जरासंध पर टूट पड़े। एक-दूसरे के वध की इच्छा वाले उन दोनों वीरों में घोर युद्ध होने लगा उधर चित्रसेन मगधराज को बलराम जी के साथ उलझा हुआ देख दूसरे रथ पर चढ़ कर आ गया और जरासंध को लड़ने से रोकने लगा।

तदनन्तर वह विशाल गजसेना के साथ जरासंध और बलराम के बीच में आ गया और उन दोनों भाइयों के साथ घोर युद्ध करने लगा। तब विशाल सेना से घिरा हुआ महाबली जरासंध बलराम और श्रीकृष्ण के अग्रगामी भोजों पर जा चढ़ा। फि‍र तो वहाँ उभय पक्ष की सेनाओं में विक्षुब्ध महासागर के समान बड़ी भयंकर एवं भारी गर्जना सुनायी देने लगी। राजन! दोनों सेनाओं में वेणु, भेरी, मृदंग और शंख आदि सहस्रों वाद्यों का महान घोष होने लगा। योद्धाओं के गर्जने, ताल ठोकने और उच्च स्वर से पुकारने आदि के कारण वहाँ सब ओर तुमुल ध्वनि छा गयी। घोड़ो की टापों और रथ के पहियों के प्रान्त भाग से उठी हुई धूल सब ओर उड़ने लगी।

उभय पक्ष के शूरवीर सैनिक बड़े-बड़े शस्त्र उठाये, धनुष लिये एक-दूसरे के सम्मुख गर्जना करते हुए युद्धस्थल में डटे हुए थे। उसमें सब ओर रथी, घुड़सवार, सहस्रों पैदल तथा अत्यन्त‍ बलशाली गजराज एक-दूसरे पर टूट पड़ते थे। वृष्णियों के साथ जरासंध के योद्धाओं का वह घमासान युद्ध प्राणों का मोह छोड़कर हो रहा था और भयानक रूप धारण करता जा रहा था। भरतनन्दन! तदनन्तर शिनि, अनाधृष्टि, बभ्रु (अक्रूर), विपृथु और आहुक (उग्रसेन)- इन सबने बलदेव जी को आगे रखकर अपनी आधी सेना से घिरे रहकर शत्रुओं की सेना के दक्षिण भाग पर आक्रमण किया।

प्रभो! उस भाग की रक्षा चेदिराज शिशुपाल, जरासंध तथा उत्तर दिशा के महापराक्रमी योद्धा शल्य और शाल्व आदि नरेश कर रहे थे। यादवों ने जीवन का मोह छोड़कर शत्रुओं पर बाण वर्षा आरम्भ कर दी। शेष सेना के आधे भाग से घिरे हुए अवगाह, पृथु, कंक, शतद्युम्न और विदूरथ आदि वीरों ने भगवान श्रीकृष्ण को आगे रखकर शत्रुसेना के वाम भाग पर आक्रमण किया।

राजेन्द्र! वह भाग भीष्मक, महामनी रुक्मी, देवक, मद्रराज शल्य तथा गुप्त बल पराक्रम से सम्पन्न पूर्व और दक्षिण दिशा के वीरों से सुरक्षित था। इन्हीं सब लोगों में जीवन का मोह छोड़कर युद्ध होने लगा। ये लोग बिजली के समान गड़गडाहट पैदा करने वाले शक्ति, ऋष्टि, प्रास तथा बाण समूहों की वर्षा करते थे। सात्यकि, चित्रक, श्याम, पराक्रमी युयुधान, राजाधिदेव, मृदुर, महारथी श्वफल्क, सत्राजित और प्रसेन- इन सबने विशाल सेना से घिरकर युद्ध स्थल में शत्रुओं के व्यूह के पुच्छ-भाग पर आक्रमण किया। मृदुर से सुरक्षित रहकर इन्होंने व्यूह के आधे भाग पर धावा बोल दिया था, उस समय इनका वेणुधारि आदि बहुत-से राजाओं के साथ युद्ध हुआ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत के खिलभाग हरिवंश के अंतर्गत विष्णु पर्व में जरासंध का मथुरा पर घेरा और दोनों पक्ष के योद्धाओं के युद्ध का वर्णनविषयक पैंतीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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