हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 32 श्लोक 27-39

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: द्वात्रिंश अध्याय: श्लोक 27-39 का हिन्दी अनुवाद

हम चाहते हैं कि तुम्हारी कृपा से अब इसका प्रेतकार्य सम्पन्न कर दिया जाय। उस मरे हुए नरेश का और्ध्व देहिक संस्कारपूर्ण करके मैं अपनी पत्नी और पुत्र वधुओं को साथ ले वन में मृगों के साथ विचरूंगा। श्रीकृष्ण! कहते हैं कि मरे हुए मनुष्य का प्रेत-संस्कार मात्र कर देने से उसके बान्वोंचरू का कर्तव्य पूरा हो जाता है और फि‍र वे उसके लौकिक ऋण से उऋण हो जाते हैं अत: मैं चिता स्था‍न पर विधिपूर्वक कंस का अन्तिम अग्नि-संस्‍कार करके उसको जलाञ्जलि मात्र देकर उसके ऋण से उऋण हो जाऊं, यही मेरी इच्छा है।

श्रीकृष्ण! यही तुमसे मेरा निवेदन है, इस विषय में मुझ पर अपना स्नेहभाव प्रकट करो। सुना है, चिता पर अन्तिम संस्कार कर देने से बेचारा मृतक प्राणी उत्तम गति प्राप्त कर लेता है' उग्रसेन का यह वचन सुनकर श्रीकृष्ण को बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने सान्त्वनापूर्वक उग्रसेन को समझाते हुए उनकी बात का इस प्रकार उत्तर दिया- 'तात! आपने यह जो कुछ कहा है, वह सब समय के अनुरूप है। राजसिंह! आपकी बात आपके उत्तम आचार-विचार और श्रेष्ठ कुल के अनुरूप हैं जो बात बीत गयी, वह वैसी ही होने वाली थी। दैव के उस विधान को लांघना किसी के लिये भी दुष्कर था; फि‍र भी उससे प्रभावित होकर जो आप ऐसी बातें कह रहे हैं (इससे मुझे दु:ख हुआ), कंस मर जाने पर भी मेरे द्वारा राजोचित सत्कार प्राप्त करेगा (इस बात के लिये मैं आपको विश्वास दिलाता हूं)। तात! आपका महान कुल में जन्म हुआ है। आपने वेदों का ज्ञान प्राप्त किया है, फि‍र आप कैसे नहीं समझ पा रहे हैं कि नियति (दैव के विधान)- का उल्लघंन करना बहुत ही कठिन है। पृथ्वीनाथ! स्थावर और जंगम सभी प्राणियों के पूर्वजन्मों में किये हुए कर्म समय से परिपक्व होते (और उन्हें शुभाशुभ फल की प्राप्ति कराते) हैं।

तात! नृपश्रेष्ठ जो वेद शास्त्रों के विद्वान्, दाता, प्रियदर्शन (सुन्दर), ब्राह्मण भक्त, नीति सम्पन्न, दीनों पर अनुग्रह करने वाले, लोकपालों के समान यशस्वी और महेन्द्रतुल्य पराक्रमी राजा हैं, उन्हें भी काल उठा ले जाता है जो धर्मात्मा, सम्पूर्ण भावों के ज्ञाता, प्रजापालन में तत्पर, क्षत्रिय धर्मपरायण तथा जितेन्द्रिय थे, वे भी काल के गाल में चले गये स्वयं अपना किया हुआ जो शुभ या अशुभ कर्म है, वही समय आने पर समस्त देहधारियों के समक्ष सुख-दु:ख के रूप में दिखायी देता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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