हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 1 श्लोक 19-32

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: प्रथम अध्याय: श्लोक 19-32 का हिन्दी अनुवाद

कंस! वही पहले भी तुम्हारी मृत्यु रहा है और इस समय भी तुम्हारे लिये प्रशंसनीय मृत्यु रूप होगा, अत: तुम देवकी के गर्भ का उच्छेद करने के लिये प्रयत्न करो। यह मेरा तुम्हारे ऊपर प्रेम है, जिसके लिये मैं यहाँ तक आया हूँ। अच्छा, अब तुम सम्पूर्ण मनोवांच्छित भोगों का उपभोग करो, तुम्हारा कल्याण हो, मैं जाता हूँ। ऐसा कहकर जब नारद जी चले गये, तब कंस बहुत देर तक उनकी बातों पर विचार करता रहा; फिर वह दांत दिखाकर जोर-जोर से अट्टाहास करने लगा और अपने सेवकों के सामने खड़ा हो मुस्‍कराकर बोला- यह नारद मुनि सर्वसाधारण में उपहास के ही पात्र हैं, विशेष चतुर नहीं हैं। मैं बैठा अथवा सोया रहूँ, असावधान या मतवाला हो किसी भी दशा में इन्द्रसहित सम्पूर्ण देवता मुझे डरा नहीं सकते।

मैं अपनी दोनों विशाल भुजाओं से इस धरातल को क्षुब्ध कर सकता हूँ। मनुष्य दलों में कौन ऐसा पुरुष है, जो मुझे क्षोभ में डालने का साहस कर सके। यह लो, आज से मैं देवताओं तथा उनका अनुसरण करने वाले मनुष्यों पक्षियों और पशुसमूहों का महान संहार करूँगा। अश्व रूपधारी केशी, प्रलम्ब, धेनुक, वृषभ रूपधारी अरिष्ट, पूतना और कालियनाग को आज्ञा दे दो कि तुम सब लोग इच्छा अनुसार रूप धारण करके सारी पृथ्वी अपनी मौज से घूमो और जो हमारे पक्ष की निन्दा करने वाले हों, उन सब पर प्रहार करो। जो प्राणी गर्भ में निवास करते हों, उनका भी पता लगा लेना चाहिये। क्योंकि नारद जी ने मेरे लिये गर्भों से ही भय बताया है। तुम लोग निश्चिन्त होकर इच्छानुसार आनन्द भोगों। मैं तुम्हारा स्वामी और संरक्षक हूँ। मेरा आश्रय लेकर तुम्हें देवताओं की ओर से कोई भय नहीं है। नारद बाबा तो युद्ध कराने का ही खेल खेलते हैं।

लोगों में फूट डाल देना उनका स्वभाव है। इस संसार में जो लोग बड़े स्न्नेह से भली-भाँति मिल-जुलकर रहते हैं, उनमें भी फूट डालने में इन्हें आनन्द आता है। ये बड़े चंचल हैं और लोगों में सदा संघर्ष पैदा करते हुए घूमते रहते हैं। विभिन्न उपायों द्वारा राजाओं में वैर बढ़ा देने के लिये ये सर्वदा सचेष्ट रहते हैं। इस प्रकार केवल वाणी मात्र से प्रलाप करता हुआ उसका चित्त चिन्ता की आग में जल रहा था।

इस प्रकार श्रीमहाभारत के खिल भाग हरिवंश के अन्तर्गत विष्णु पर्व में नारद जी का आगमन तथा कंस का वाक्य विषयक पहला अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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