हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 16 श्लोक 35-46

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: षोडश अध्याय: श्लोक 35-46 का हिन्दी अनुवाद


'बन्‍धुजीव (बन्‍धूक) के लाल फूलों से सुशोभित हो जो सब ओर से लाल-लाल दिखायी देती है तथा जिनकी कीचड़ सूख गयी है, ऐसी विचित्र एवं कमनीय वनश्रेणियों में (उनकी शोभा निहारने के लिये) मन आसक्‍त हो रहा है। वन की शोभा बढ़ाने वाले असन, छितवन को विदार, वाणसन, निकुम्‍भ, प्रियक और स्‍वर्ण नाम वाले वृक्ष वनों में फूलों से लदकर अधिक शोभा पा रहे हैं। केतकी (केवड़े) के वृक्ष भी सब ओर खिले हुए हैं। सृमर (एक प्रकार के मृग) और उल्‍लू भी सर्वत्र सानन्‍द विचरते हैं। दूध-दही के माटों या घड़ों से जो माखन आदि ढाले जाते हैं, वे ही जिनकी हँसी है, उन व्रजों एवं गोष्ठों में तो यह शरद्-ऋतु मूर्तिमती सुन्‍दरी युवती की भाँति घूम रही है। निश्चय ही देवता लोग इस समय देवश्रेष्ठ भगवान गरुड़ध्‍वज को, जो वर्षाकाल में सुखपूर्वक शयन कर चुके हैं, जगा रहे हैं। वर्षा बीत जाने पर ऐसी सुन्‍दर खेती से सुशोभित शरद्-ऋतु का शुभागमन हुआ है।

इस समय (मेघ के समान) नीले, चन्‍द्रमा के समान श्‍वेत तथा सूर्य के सदृश सुनहरे रंग वाले बहुत-से पक्षियों ने जिसे बहुरंगा बना दिया है, जो विविध प्रकार के फलों और नूतन पल्‍लवों से घना हो रहा है और इसलिये जो इन्‍द्रधनुष से युक्‍त श्‍याम मेघ की-सी शोभा धारण करता है, जिसके वृक्षों की एक-एक शाखा घर के समान जान पड़ती है, जो लता और वल्‍लरियों से भली-भाँति अलंकृत है, जिसका विशाल मूलभाग बहुत दूर तक फैला हुआ है तथा जो वायु के विस्‍तार से सुशोभित होता है, वह गोवर्धन पर्वत ही हमारा देवता है। हम उसकी तथा इन गौओं की विशेष रूप से पूजा करें। गायों के सीगों में मुकुट और मोर पंख के समान बने हुए आभूषण बांधे जायँ। उनके गले में बड़ी घंटियाँ लटका दी जायँ और व्रज के कल्‍याण के लिये शरद् में सुलभ होने वाले पुष्‍पों द्वारा गौओं की पूजा की जाय। साथ ही ‘गिरियज्ञ’ आरम्‍भ कर दिया जाय। देवता लोग 'इन्‍द्र' की पूजा करें और हम लोग गिरिराज गोवर्धन की। यदि आप लोगों का मुझ पर प्रेम है और यदि हम लोग एक-दूसरे के हितैषी सुहृद हैं तो मैं आपके द्वारा हठ एवं बलपूर्वक गोयज्ञ कराऊँगा। गौएं सदा ही सबके लिये पूजनीय हैं- इसमें संशय नहीं है। यदि मेरे ही वैभव (अभ्‍युदय) के लिये मेरी इस सच्‍ची बात को बिना विचारे मान लें और इसके अनुसार कार्य करें।

इस प्रकार श्रीमहाभारत के खिलभाग हरिवंश के अन्‍तर्गत विष्‍णु पर्व में शरद्वर्णन विषयक सोलहवां अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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