हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 119 श्लोक 136-154

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: एकोनविंशत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 136-154 का हिन्दी अनुवाद

उसके नेत्र क्रोध से लाल हो रहे थे, वह क्रोध में भरकर सिंह के समान दहाड़ता और अपने विशाल धनुष को खींचता हुआ बोला- ‘अरे खड़ा रह! खड़ा रह!!’। बाणासुर की बात सुनकर और युद्धस्थल में उसके मुख पर दृष्टि डालकर अपराजित वीर प्रद्युम्नकुमार अनिरुद्ध हँसने लगे। बाणासुर का विशाल रथ दस नल्व (चार हजार हाथ) के बराबर था, जिनकी ध्वनि सब ओर गूँजती रहती थी, उस रथ की ध्वजा-पताकाएँ लाल रंग की थीं तथा उस रथ के प्रत्येक अवयव पर ऋष्य नामक मृग विशेष का चमड़ा मढ़ा हुआ था। उस महाकाय दानव के रथ में एक सहस्र घोड़े जुते हुए थे, ठीक उसी तरह जैसे पूर्वकाल में देवासुर-संग्राम के अवसर पर हिरण्यकशिपु के रथ में जोते गये थे। यदुकुलतिलक अनिरुद्ध ने जब उस दानव को आक्रमण करते देखा, तब वे युद्ध के लिये हर्ष और उत्साह से भर गये तथा महान तेज से सम्पन्न हो गये।

जैसे पूर्वकाल में आदिदैत्य हिरण्यकशिपु का वध करने के लिए उद्यत हुए भगवान नरसिंह शोभा पाते थे, उसी प्रकार संग्राम की लालसा से ढाल और तलवार धारण किये स्वस्थ भाव से खड़े हुए वीर अनिरुद्ध सुशोभित होते थे। उस समय बाणासुर ने अनिरुद्ध को ढाल और तलवार लिये अपने सामने आते देखा। उन्हें केवल ढाल और तलवार धारण किये पैदल आते देख उन्हें मार डालने की इच्छा से बाणासुर को अनुपम हर्ष प्राप्त हुआ। कवच से रहित तथा केवल खड्ग हाथ में लिये होने पर भी यादव वीर अनिरुद्ध बाणासुर को ‘यह अजेय है’ ऐसा मानते हुए भी नि:शंक हो उसके सामने युद्ध के लिये खड़े हुए। विजय से सुशोभित होने वाला महाबली बाणासुर कुपित हो रणभूमि में अनिरुद्ध से बोला- ‘इसे पकड़ो, मारो’। उस समरांगण में इस तरह बोलते हुए बाणासुर की बात सुनकर हँसते हुए प्रद्युम्‍नकुमार ने क्रोधपूर्वक उसकी ओर देखा।

वहाँ भय से संत्रस्त हो रोती हुई भामिनी उषा को सान्‍त्‍वना देकर अनिरुद्ध हंसते हुए युद्ध के लिये खड़े हो गये। तदनन्तर समरभूमि में कुपित हुए बाणासुर ने अनिरुद्ध के वध की इच्छा से उन पर चारों ओर से क्षुद्रक नामक बाण समूहों का प्रहार आरम्भ किया। किंतु अनिरुद्ध ने उसे पराजित करने की इच्छा रखकर उसके सारे बाणों को तलवार से ही काट डाला। तब बाणासुर ने पुन: रणभूमि में अनिरुद्ध के वध की अभिलाषा से उनके सिर पर सब ओर से क्षुद्रक नाम वाले बाण समूहों की वर्षा आरम्भ कर दी। उस समय उसके हजारों बाणों को ढाल से ही इधर-उधर करके अनिरुद्ध उसके सामने खड़े हो उदयकाल के सूर्य की भाँति शोभा पाने लगे। रणभूमि में बाणासुर का तिरस्कार करके यदुनन्दन अनिरुद्ध उसी तरह निर्भय खड़े रहे, जैसे वन में सिंह अपने सामने एक हाथी को देखकर निर्भय खड़ा रहता है। तदनन्तर बाणासुर ने अपराजित वीर प्रद्युम्‍नकुमार को मर्मभेदी, शीघ्रगामी, तेज किये हुए पैने बाण समूहों द्वारा घायल कर दिया। उन बाणों से घायल होने पर अनिरुद्ध ढाल और तलवार लिये बाणासुर पर टूट पड़े। उन्हें आक्रमण करते देख उस असुर ने तीखे सायकों से उन पर और भी चोट की। झुकी हुई गाँठ वाले बाणों से अत्यन्त घायल होने पर महाबाहु अनिरुद्ध क्रोध से जल उठे और दुष्कर कर्म करने की इच्छा करने लगे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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