हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 118 श्लोक 56-75

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: अष्टादशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 56-75 का हिन्दी अनुवाद


सखि! तुम्हारे उस चित्तचोर का कुल, वर्ण, शील, रूप और देश कुछ भी तो मुझे ज्ञात नहीं है। सखि! फिर भी मैं बुद्धिपूर्वक जैसा जो कुछ कर सकती हूँ, करूँगी, इस समय जो कर्तव्य प्राप्त है, उसके विषय में मेरी बात सुनो, जिससे तुम अपना मनोरथ पा लोगी। देवता, दानव, यक्ष, गन्धर्व, नाग और राक्षस- इनमें जो-जो प्रभाव, रूप और कुल की दृष्टि से बढ़े-चढ़े हैं, उन सबका उनके प्रभाव के अनुसार ही मैं चित्र बनाऊँगी। सखि! मनुष्‍य लोक में भी जो विश्वविख्यात श्रेष्ठ पुरुष हैं, उनका भी चित्र अंकित करूँगी। भीरु! सात रात में उन सबके चित्र बनाकर मैं तुम्हें उन सबका दर्शन कराऊँगी। तदनन्तर पहचान लेने पर तुम मनोनीत पति को अपने पैरों पर पड़ा हुआ पाओगी।' चित्रलेखा ने हित-साधन करने की इच्छा से जब पूर्वोक्त बात कही, तब उषा अपनी प्यारी सखी चित्रलेखा से बोली, ‘अच्छा, ऐसा ही करो’। तब ‘तथास्तु’ कहकर चित्रलेखा ने सब ओर से यथायोग्‍य चित्र तैयार किये, क्योंकि इस कला में उसके हाथ सधे हुए थे। उसने सात रातों में सब प्रमुख पुरुषों के चित्र अंकित कर लिये। फिर वह सुन्दरी चित्रपट्ट में स्थापित हुए उन सब लोगों को वहाँ ले आयी।

तदनन्तर चित्रलेखा ने अपने बनाये हुए उस चित्रपट्ट को फैलाकर उषा को तथा विशेषत: उसकी सब सखियों को भी दिखाया। वह बोली- 'ये देवताओं में जो मुख्य-मुख्य पुरुष हैं, उनके चित्र हैं तथा इस ओर दानववंशी वीर अंकित किये गये हैं। इनके चारों ओर किन्नर, नाग, यक्ष और राक्षसों के चित्र हैं, गन्धर्व, असुर, दैत्य तथा अन्यान्य सर्पों के भी चित्र हैं। समस्त मनुष्यों में जो विशिष्टतम पुरुष हैं, वे इधर हैं। इन सबको जैसा मैंने अंकित किया है, देखो। सखि! जो तुम्हारा पति है और उसका जैसा रूप है, वह सब मैंने अंकित किया है। तुमने स्वप्न में जिसे देखा है, उसे इस चित्रपट्ट में पहचानों।' तब मतवाली-सी प्रतीत होने वाली उषा ने क्रमश: उन सबको देखकर देवता, दानव, गन्धर्व और विद्याधर गणों को लाँघकर समस्त यदुवंशियों तथा यदुनन्दन श्रीकृष्ण को देखा। वहीं अनिरुद्ध का चित्र देखकर उसके नेत्र आश्चर्य से खिल उठे ओर वह चित्रलेखा से बोली- सखि! यही वह चोर है, जिसने अट्टालिका पर सोते समय पहले स्वप्न में आकर मुझे दूषित किया था। इसके रूप को तो मैं खूब पहचानती हूँ, परंतु यह रतिचोर कहाँ से आया था, यह नहीं जान सकी।

शोभने! चित्रलेखे! मुझे इसका ठीक-ठीक परिचय दो। भामिनि! इन चोर महोदय का कुल, शील, अभिजन और नाम क्या है? यह सब जान लेने के पश्चात मैं अपने इस कर्तव्य का निश्चय करूँगी। चित्रलेखा बोली- विशाललोचने! ये तुम्हारे पति साक्षात त्रिलोकीनाथ बुद्धिमान भगवान श्रीकृष्ण के पोते हैं और प्रद्युम्न के पुत्र हैं। इनका पराक्रम बड़ा भयंकर है। पराक्रम में इनकी समानता करने वाला तीनों लोकों में कोई नहीं है। ये पर्वतों को ही उखाड़कर उन पर्वतों द्वारा ही शत्रुओं का संहार कर सकते हैं। तुम धन्य हो, तुम पर देवी का बड़ा अनुग्रह है, जिससे तुम्हारे लिये पार्वती जी ने परमयोग्‍य यदुकुलतिलक अनिरुद्ध को पतिरूप में प्रदान किया है। इनके पूर्वज श्रेष्ठतम पुरुष हैं। उषा बोली- वरानने! विशाललोचने! तुम ही इस कार्य की करने योग्‍य हो। मुझे तुम्हारे सिवा दूसरा कोई सहारा नहीं मिल सकता। तुम मुझ अशरण को शरण देने वाली बनो।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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