हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 117 श्लोक 40-55

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: सप्तदशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 40-55 का हिन्दी अनुवाद

'उषे! सुनो। तुम्हारे पिता बाणासुर के लिये महान देवता भगवान हर ने पार्वती देवी से कहा था कि ‘तुम इसे अपना पुत्र जानो’। तुम्हें क्या पीड़ा है? तुम्हारे मुख और नासाग्र भाग में पसीने की बूँदें सुशोभित हो रही हैं, ठीक उसी तरह जैसे शरत्काल आने पर कमल के ऊपर ओस के कण शोभा पाते हैं। पूर्ण चन्द्रमा के समान तुम्हारा मुख आज बादल में छिपे हुए चन्द्रमा की भाँति कान्तिहीन दिखायी देने के कारण शोभा नहीं पा रहा है। ऐसा किसलिये हो रहा है, कारण बताओ? बाले! तुम लम्बी साँस छोड़ रही हो, मन से प्रसन्न नहीं हो रही हो, इसका क्या कारण है? तुम्हारे मन में जैसी रुचि हो, उसके अनुकूल दिव्य भोजन ग्रहण करो। पहले तो तुम्हें पान बहुत अच्छा लगता था, अब उसे ग्रहण क्यों नहीं करती हो? देवि! उठो और जो दूसरे लोगों के लिये दुर्लभ हैं ऐसी मीठी वस्तुएँ ग्रहण करो। बताओ, कैसी पीड़ा हो रही है।'

उषा के महल में होने वाले इस कोलाहल को सुनकर दासियों ने उसकी माता के आगे पृथक-पृथक इस प्रकार कहना आरम्भ किया- 'देवि! सती-साध्वी राजकुमारी उषा जलक्रीड़ा और विहार से जब घर लौटी हैं, तभी से मौन-सी दिखायी देती हैं। अत: महारानी! हम दासियाँ आपको यह बात बता रही हैं- राजकुमारी पर यह कैसा मोह छा रहा है? उनका यह मौन किसलिये है? क्या कारण है कि वे निरन्तर सोयी पड़ी रहती हैं? उनमें मलिनता कैसे आ गयी है? देवि! इन सब बातों पर विचार करके उनके इस कष्ट की शान्ति के लिये वैद्यों को नियुक्त कीजिये। देवि! वरानने! जो शरीर शिरीषपुष्प के समान अत्यन्त कोमल है, वह रोग का भार कैसे सहन करता है?' यह सुनकर वे हंसगामिनी देवी उस समय बड़ी उतावली के साथ उठीं और जहाँ उषा सोयी थी, उस स्थान में पहुँचकर पूछने लगीं कि ‘यह कैसा कष्टदायक लक्षण प्रकट हुआ है?'

उस साध्वी महारानी ने अपने पल्लवाकार हाथ से उषा के कोमल हाथ का स्पर्श करके अनायास ही उसकी अंगलियों को चटकाया। फिर उन्होंने पूछा- 'कल्याणि! तुम्हें कैसा कष्ट है? ये वैद्य लोग आकर तुम से इस विषय में जिज्ञासा करते हैं।' वैद्य बोले- महारानी हम जानते हैं, राजकुमारी अपनी सखियों के साथ जलक्रीड़ा के लिये उस स्‍थान पर गयी थी, जहाँ जो परिश्रम हुआ, उसी से यह कष्ट बढ़ गया। श्रम से गलानि उत्पन्न हुई है, उसी से बारम्बार अँगड़ाई आ रही है तथा परिश्रम के ही कारण सारे अंगों में शिथिलता आ गयी है, जिससे यह सो रही है, अत: आपको इसके लिये भय नहीं करना चाहिये। महारानी ने कहा- वैद्यों और मन्त्रियों! राजकुमारी के वक्ष:स्थल पर बरफमिला चन्दन रखा गया है, किंतु शीघ्र ही इसमें इस प्रकार बुद-बुद होने लगा है, मानो यह खौल रहा हो, यह क्या बात है? ऐसा क्यों हुआ?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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