हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 112 श्लोक 19-30

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: द्वादशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 19-30 का हिन्दी अनुवाद

द्वारका में पहुँचकर मधुसूदन का दर्शन करके मैं लज्जित एवं शोक से संतप्त हो उठा। गोविन्द ने मेरी इस अवस्था को लक्ष्य किया। इसी बीच में उस ब्राह्मण ने आकर मुझे लज्जित देख भगवान श्रीकृष्ण के समीप ही इस तरह निन्दित वचन कहना आरम्भ किया- 'अहो! मेरी मूर्खता तो देखो। मैंने इस कायर या नपुंसक की बात पर विश्वास कर लिया। जहाँ प्रद्युम्न, अनिरुद्ध, बलराम और श्रीकृष्ण भी रक्षा करने में असमर्थ हों, वहाँ दूसरा कौन रक्षा कर सकता है? व्यर्थ बातें बनाने वाले इस अर्जुन को धिक्कार है! झूठी आत्मप्रशंसा करने वाले इस अर्जुन के धनुष को भी धिक्कार है! क्योंकि यह खोटी बुद्धि वाला पुरुष स्वयं ही दैव का मारा हुआ है तो भी मूर्खतावश मेरी रक्षा करने आया था।'

वैशम्पायन जी कहते हैं- वे ब्रह्मर्षि जब इस प्रकार आक्षेप करने लगे, तब वीर अर्जुन वैष्णवी विद्या का आश्रय लेकर संयमनीपुरी में गये, जहाँ भगवान यम विराजमान हैं। वहाँ ब्राह्मण के बालक को न देखकर ये क्रमश: इन्द्र, अग्रि, निर्ऋति, सोमकी उदीची तथा वरुण- इन सबकी पुरी में गये। फिर वे अपना अस्त्र-शस्त्र लिये रसातल तथा स्वर्ग में भी गये। इतने पर भी ब्राह्मण-बालक को न पाकर अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण न कर सकें। अत: उन्होंने जलती आग में प्रवेश करने का विचार किया। उस समय श्रीकृष्ण और प्रद्युम्‍न ने आकर उन्हें ऐसा करने से रोका और कहा- 'मैं उन ब्राह्मण-बालकों को तुम्हें दिखा दूँगा, तुम स्वयं ही अपनी अवज्ञा न करो। ये संसार के मनुष्य तुम्हारी सुविस्तृत कीर्ति की स्थापना करेंगे।

अर्जुन कहते हैं- इस प्रकार स्नेहपूर्वक बात करके माधव ने मुझे आश्वासन दिया और उन ब्राह्मण को सान्त्वना देकर सारथी से यह बात कही- दारुक! तुम सुग्रीव, शैव्य, मेघपुष्प और बलाहक नामक घोड़ों को रथ में जोतो। इस प्रकार उस समय उन्होंने दारुक से कहा तदनन्तर रथ जुत जाने पर शूरनन्दन श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण को रथ पर चढ़ा लिया और दारुक को उतारकर मुझ से कहा- 'तुम सारथि का काम करो।' कौरवश्रेष्ठ! तत्पश्चात श्रीकृष्ण, मैं और वह ब्राह्मण तीनों उस रथ पर बैठकर सोमपालित उत्तर दिशा की ओर चल दिये।

इस प्रकार श्रीमहाभारत के खिलभाग अन्तर्गत विष्णु पर्व में वासुदेव-माहात्म्य के प्रसंग में श्रीकृष्ण का उत्तर दिशा को गमनविषयक एक सौ बारहवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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