हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 110 श्लोक 80-88

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: दशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 80-88 का हिन्दी अनुवाद

अग्‍नि में होमे गये जिस पावन आज्य-भाग का हम लोग आस्वादन करते हैं, वह सब विश्वरूप कमलनयन भगवान विष्णु में प्रदान करते हैं। वेदों के इस कथन के अनुसार मैं भगवान विष्णु की गति प्राप्त करने के लिये यहाँ इस पृथ्वी पर आया हूँ। यहाँ आप राजाओं से घिरे हुए भगवान श्रीकृष्ण का मैंने दर्शन किया है। राजाओं! मैंने जो श्रीकृष्‍ण के विषय में यह कहा है कि ‘जनार्दन! तुम आश्चर्यरूप और धन्य हो’ वे ही यहाँ आप लोगों के बीच में विराजमान हैं। इन्होंने आज मेरी इस बात का जो उत्तर दिया है कि दक्षिणाओं के सहित (मैं धन्य हूँ), यह मेरे प्रश्न का पर्याप्त उत्तर प्राप्त हो गया।

क्योंकि दक्षिणाओं सहित विष्णु ही सब यज्ञों के आश्रय हैं, इसलिये ‘दक्षिणाओं सहित’ इतना कह देने पर मेरा प्रश्न समाप्त हो गया। पहले कच्छप ने धन्यता का प्रतिपादन आरम्भ किया था, फिर परम्परा से यहाँ इन दक्षिणा सहित परमपुरुष श्रीकृष्ण में उसका उपसंहार हुआ है, अत: कौन धन्य है, इस बात का उत्तर प्राप्त हो गया। आप लोग जो मेरे पूर्वोक्त कथन का निश्चित तात्पर्य पूछ रहे थे, उसके विषय में यह सब कुछ मैंने बता दिया। अत: मैं जैसे आया था, वैसे ही जा रहा हूँ।' नारद जी के स्वर्गलोक को चले जाने पर वे समस्त भूपाल विस्मित होकर सेना और सवारियों सहित अपने राष्ट्रों को चले गये। तत्पश्चात यदुकुल को आनन्दित करने वाले वीर जनार्दन भी अग्नि के समान तेजस्वी यदुवंशी वीरों के साथ अपने ही भवन में पधारे।

इस प्रकार श्रीमहाभारत खिलभाग हरिवंश के अर्न्तगत विष्णु पर्व में धन्योपाख्यान विषयक एक सौ दसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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