हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 105 श्लोक 22-42

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: पन्‍चाधिकशततम अध्याय: श्लोक 22-42 का हिन्दी अनुवाद

मेघ बड़े कठोर शब्‍द में गर्जना करने लगे, आकाश से बिजली गिरने लगी, गीदड़ियाँ अमंगलसूचक बोली बोलने लगीं, जिससे सेना के महान संहार की सूचना मिलती। गीध दानवों के रक्त का पान करने की इच्छा रखकर उसकी ध्वजा के अग्रभाग पर जा बैठा। उसके रथ के सामने पृथ्वी पर कबन्ध पड़ा हुआ दिखायी देने लगा। शम्बरासुर के रथ के ऊपर बहुत-से पक्षी ‘चीची कूची’ ऐसी बोली बोलने लगे। सूर्य को राहु ने ग्रस लिया और उन पर अनेक घेरे पड़ गये। उसका बायाँ नेत्र फड़कने लगा, जो भय की सूचना दे रहा था। बायीं भुजा काँपने लगी और रथ के घोडे़ लड़खड़ाकर गिरने लगे। देवद्रोही शम्बरासुर के मस्‍तक पर कौआ जा बैठा, पर्जन्यदेव कंकड़ और अंगारों से मिश्रित रक्त की वर्षा करने लगे। संग्राम के मुहाने पर सहस्रों उल्कापात होने लगे, घोड़े हाँकने वाले सारथी के हाथ से चाबुक गिर पड़ा। इन उपस्थित हुए उत्पातों की कोई परवा न करके क्रोध में भरा हुआ शम्बरासुर प्रद्युम्न को मार डालने की इच्छा से आगे बढ़ा। उस समय एक ही साथ भेरी, मृदंग, शंख, पणव, आनक और दुन्दुभि आदि बाजे बज उठे। उनकी तुमुल ध्वनि से यह पृथ्वी काँपने लगी। उस महान शब्द से सारे पशु-पक्षी संत्रस्त हो गये और भय से व्याकुल चित्त होकर सब ओर भागने लगे। उस समय रणभूमि के मध्यभाग में शत्रु के वध का चिन्तन करते हुए श्रीकृष्ण कुमार प्रद्युम्‍न असंख्य सेनाओं से घिरे हुए युद्ध के लिये दृढ़ निश्‍चय करके खड़े हुए थे।

शम्बरासुर ने कुपित होकर प्रद्युम्‍न पर एक हजार बाणों का प्रहार किया, उन बाणों को अपने पास आते ही प्रद्युम्‍न ने एक सिद्धहस्त योद्धा की भाँति काट डाला। अब प्रद्युम्‍न धनुष लेकर बाणों की वर्षा करने लगे। उस समय उस सेना में ऐसा कोई भी सैनिक नहीं था, जो उनके बाणों से विद्ध न हुआ हो। प्रद्युम्‍न के बाणों के प्रहार से वह सारी सेना युद्ध से विमुख हो गयी तथा भयभीत की भाँति शम्बरासुर के समीप सिमटकर खड़ी हो गयी। अपनी सेना को भागती देख दानवराज शम्बर क्रोध से अचेत-सा हो गया। उस समय उसने अपने मन्त्रियों को आज्ञा दी। तुम सब लोग जाओ और मेरे आदेश से शत्रु के उस पुत्र पर प्रहार करो। तुम्हें इस शत्रु की उपेक्षा नहीं करनी चाहिये। इसे शीघ्र ही मार डालो। यदि इसकी उपेक्षा की गयी तो यह उपेक्षित रोग की भाँति निश्‍चय ही शरीर का नाश कर डालेगा, अत: मेरा प्रिय करने की इच्छा से इस दुर्बुद्धि पापी का वध कर डालो। तब उन मन्त्रियों ने स्वामी की आज्ञा को शिरोधार्य करके क्रोधपूर्वक बाण वर्षा करते हुए बड़ी उतावली के साथ रथों को हाँका। युद्ध में उन्हें धावा करते देख बलवान कमरध्वज प्रद्युम्‍न भी कुपित हो उठे और बड़े वेग से धनुष उठाकर शत्रुओं के सामने खडे़ हो गये। रुक्मिणी का आनन्द बढ़ाने वाले महातेजस्वी प्रद्युम्‍न ने अत्यन्त अमर्ष में भरकर झुकी हुई गाँठ वाले पच्‍चीस बाणों से दुर्धर को, तिरसठ बाणों से केतुमाली को, सत्तर बाणों से शत्रुहन्ता को और बयासी बाणों से प्रमर्दन को घायल कर दिया। तदनन्तर वे कुपित हुए मंत्री भी प्रद्युम्‍न को बाण-वर्षा का निशाना बनाने लगे। उनमें से एक-एक ने प्रद्युम्‍न को साठ-साठ बाण मारे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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