"हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 116 श्लोक 61-65" के अवतरणों में अंतर

छो (Text replacement - "सहस्त्र" to "सहस्र")
छो (Text replacement - "सूर्यं " to "सूर्य ")
 
पंक्ति 11: पंक्ति 11:
 
शोणितं शोणितपुरे सर्वत: परमं तत:।।61।।
 
शोणितं शोणितपुरे सर्वत: परमं तत:।।61।।
  
सूर्यं भित्वाुरे  महोल्कात च पपात धरणीतले।
+
सूर्य भित्वाुरे  महोल्कात च पपात धरणीतले।
 
स्व्पक्षे चोदित: सूर्यो भरणीं समपीडयत्।।62।।
 
स्व्पक्षे चोदित: सूर्यो भरणीं समपीडयत्।।62।।
  

01:16, 24 मार्च 2018 के समय का अवतरण

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 116 श्लोक 61-65

Prev.png

 

देवानामपि यो देव: सोअप्युवर्षत वासव:।
शोणितं शोणितपुरे सर्वत: परमं तत:।।61।।

सूर्य भित्वाुरे महोल्कात च पपात धरणीतले।
स्व्पक्षे चोदित: सूर्यो भरणीं समपीडयत्।।62।।

चैत्यंवृक्षेषु सहसा धारा: शतसहस्रडश:।
शोणितस्य‍ स्त्रहवन्‍ घोरा निपेतुस्ताशरका भृशम्।।63।।

राहुरग्रसदादित्ययमपर्वणि विशाम्प‍ते।
लोकक्षयकरे काले निर्घातश्चारपतन्मपहान्।।64।।

दक्षिणां दिशमास्थारय धूमकेतु: स्थितोअभवत्।
अनिशं चाप्यशविच्छिन्नाक ववुर्वाता: सुदारुणा:।।65।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः