एकाशीतितम (81) अध्याय: सभा पर्व (अनुद्यूत पर्व)
महाभारत: सभा पर्व: एकाशीतितम अध्याय: श्लोक 19-39 का हिन्दी अनुवाद
संजय! यह सब देखकर द्रोण के साथ भीष्म, कृपाचार्य, सोमदत्त और महामना बाह्लीक वहाँ से उठकर चल गये। तब मैंने विदुर की प्रेरणा से वहाँ यह बात कही- ‘मैं कृष्णा को मनोवाछित वर दूँगा। वह जो कुछ चाहे, माँग सकती है’। तब वहाँ पांचाली ने यह वर मांगा कि पाण्डव लोग दासभाव से मुक्त हो जायँ। मैंने भी रथ और धनुष आदि के सहित पाण्डवों को उनकी समस्त सम्पति के साथ इन्द्रप्रस्थ लौट जाने की आज्ञा दे दी थी। तदनन्तर सब धर्मों के ज्ञाता परम बुद्धिमान विदुर ने कहा- ‘भरतवंशियो! यह कृष्णा जो तुम्हारी सभा में लायी गयी, यही तुम्हारे विनाश का कारण होगा। यह जो पाचालराज की पुत्री है, वह परम उत्तम लक्ष्मी ही है। देवताओं की आज्ञा से ही पांचाली इन पाण्डवों की सेवा करती है। कुन्ती के पुत्र अमर्ष में भरे हुए है। द्रौपदी को जो यहाँ इस प्रकार क्लेश दिया गया है, इसे वे कदापि सहन नहीं करेंगे। सत्यप्रतिज्ञ भगवान श्रीकृष्ण से सुरक्षित महान् धनुर्धर वृष्णिवंशी अथवा महारथी पांचाल वीर भी इसे नहीं सहेंगे। अर्जुन पांचाल वीरों से घिरे हुए अवश्य आयँगे। उनके बीच में महाधनुर्धर महाबली भीमसेन होंगे, जो दण्डपाणि यमराज की भाँति गदा घुमाते हुए युद्ध के लिये आयँगे। उस समय परम बुद्धिमान अर्जुन के गाण्डीव धनुष की टंकार सुनकर और भीमसेन की गदा का महान् वेग देखकर कोई भी राजा उनका सामना करने में समर्थ न हो सकेंगे। अत: मुझे तो पाण्डवों के साथ सदा शान्ति बनाये रखने के ही नीति अच्छी लगती है। उनके साथ युद्ध करना मुझे पसंद नहीं है। मैं पाण्डवों को सदा ही कौरवों से अधिक बलवान् मानता हूँ। क्योकि महान् तेजस्वी और बलवान् राजा जरासंध को भीमसेन ने बाहुरूपी शस्त्र से ही युद्ध में मार गिराया था। भरतवंशशिरोमणे! अत: पाण्डवों के साथ आप को शान्ति ही बनाये रखनी चाहिये। दोनों पक्षों के लिये यही उचित है। आप नि:शंक होकर यही उपाय करें। महाराज! ऐसा करने पर आप परम कल्याण के भागी होंगे। संजय! इस प्रकार विदुर ने मुझसे धर्म और अर्थयुक्त बातें कही थी; किंतु पुत्र का हित चाहने वाला होकर भी मैंने उनकी बात नहीं मानी।
इस प्रकार व्यासनिर्मित श्रीमहाभारतनामक एक लाख श्लोकों की सन्हिता में सभापर्व के अन्तर्गत अनुद्यूत पर्व में धृतराष्ट्रसंजय-संवादविषयक इक्यासीवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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