अशीतितम (80) अध्याय: सभा पर्व (अनुद्यूत पर्व)
महाभारत: सभा पर्व: अशीतितम अध्याय: श्लोक 40-52 का हिन्दी अनुवाद
कौरवो! (अर्जुन के साथ मुझे लड़ना पड़े) इस पृथ्वी पर इससे बढ़कर महान् दु:ख मेरे लिये और क्या हो सकता है? धृष्टद्युम्न द्रोण की मौत है, यह बात सर्वत्र फैल चुकी है। मेरे वध के लिये ही उसका जन्म हुआ है। यह भी सब लोगों ने सुन रखा है। धृष्टद्युम्न स्वयं भी संसार में अपनी वीरता के लिये विख्यात है। तुम्हारे लिये यह निश्चय ही बहुत उत्तम अवसर प्राप्त हुआ है। शीघ्र ही अपने कल्याण-साधन में लग जाओ। पाण्डवों को वनवास दे देने मात्र से तुम्हारा अभीष्ट सिद्ध नहीं हो सकता। यह राज्य तुम लोगों को लिये शीतकाल में होने वाली ताड़ के पेड़ की छाया के समान दो ही घड़ी तक सुख देने वाला है। अब तुम बडे़-बड़े यज्ञ करो, मनमाने भोग भोगो और इच्छानुसार दान कर लो। आज से चौदहवें वर्ष में तुम्हें बहुत बड़ी मार-काट का सामना करना पड़ेगा’। द्रोणाचार्य की यह बात सुनकर धृतराष्ट्र ने कहा- ‘विदुर! गुरु द्रोणाचार्य ने ठीक कहा है। तुम पाण्डवों को लौटा लाओ। यदि वे न लौटें तो वे अस्त्र-शस्त्रों से युक्त रथियों और पैदल सेनाओं से सुरिक्षत और भोग सामग्री से सम्पन्न हो सत्कारपूर्वक वन में भ्रमण के लिये जायँ; क्योंकि वे भी मेरे पुत्र ही हैं’।
इस प्रकार श्रीमहाभारत सभापर्व के अन्तर्गत अनुद्यूत पर्व में विदुर, धृतराष्ट्र और द्रोण के वचनविषयक अस्सीवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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