महाभारत विराट पर्व अध्याय 38 श्लोक 22-34

अष्टात्रिंश (38) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

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महाभारत: विराट पर्व: अष्टात्रिंश अध्याय: श्लोक 22-34 का हिन्दी अनुवाद


तुम स्त्रियों और पुरुषों के बीच कौरवों को हराकर अपने गोधन को वापस लाने की प्रतिज्ञा करके पुरुषार्थ के विषय में अपनी श्लाघा करते हुए युद्ध के लिये निकले थे; फिर अब क्यो युद्ध नहीं करना चाहते ?। यदि उन गौओं को बिना जीते तुम घर लौटोगे, तो वीर पुरुष तुम्हारी हँसी उड़ायेंगे और यत्र-तत्र स्त्रियाँ और पुरुष एकत्र हो तुम्हारा उपहास करेंगे। मैं भी सैरन्ध्री के द्वारा सारथ्य के कार्य में कुशल बतायी गयी हूँ, अतः अब गौओं को जीतकर वापस लिये बिना मैं नगर में नहीं जा सकूँगी। सैरन्ध्री और तुमने भी बड़ी-बड़ी बातें कहकर मेरी बहुत स्तुति प्रशंसा की है, फिर सम्पूर्ण कौरवों के साथ मैं ही क्यों न युद्ध करूँ ? तुम दृढ़ता पूर्वक डट जाओ। उत्तर बोला - बृहन्नले! भारी संख्या में आये हुए कौरव भले ही मत्स्य देश का सारा धन इच्छानुसार हर ले जायँ, स्त्रियाँ अथवा पुरुष जितना चाहें, मेरा उपहास करें तथा मेरी गौएँ भी चली जायँ; किन्तु इस युद्ध में मेरा कोई काम नहीं है। मेरा नगर सूना पड़ा है। (पिताजी उसकी रक्षा का भार मुझे दे गये थे )। मैं पिताजी से डरता हूँ ( इसलिये यहाँ नहीं ठहर सकता )। वैशम्पायन जी कहते हैं - जनमेजय! ऐसा कहकर मान ओर अपमान को त्यागकर बाण सहित धनुष को वहीं छोड़कर कुण्डलधारी राजकुमार उत्तर रथ से कूद पड़ा और भयभीत होकर भाग चला।

तब बृहन्नला ने कहा - राजकुमार! क्षत्रिय का यु़द्ध से भागना शूरवीरों की दृष्टि में धर्म नहीं है। युद्ध करके मर जाना अच्छा है; किन्तु भयभीत होकर भागना कदापि अचछा नहीं है। वैशम्पायन जी कहते हैं - राजन्! ऐसा कहकर कुन्ती नन्दन धनुजय भी उस उत्तम रथ से कूद पड़े और भागते हुए राजकुमार को पकड़ने के लिये अपनी लंबी चोटी हिलाते और लाल रंग की साड़ी एवं दुपट्टे को फहराते हुए उसके पीछे-पीछे दौड़े। उस समय चोटी हिला हिलाकर दौड़ते हुए अर्जुन को उस रूप में देखकर उन्हें न जानने वाले कुछ सैनिक ठहाका मारकर हँसने लगे। उन्हें शीघ्र गति से दौड़ते देख कौरव आपस में कहने लगे -। ‘यह कौन है जो राख में छिपी हुई अग्नि की भाँति नारी के वेश में छिपा है ? इसकी कुछ बातें तो पुरुषों जैसी हैं और कुछ स्त्रियों जैसी। ‘इसका स्वरूप तो अर्जुन से मिलता - जुलता है; किंतु वेश भूषा इसने नपुंसकों जैसी बना रक्खी है। देखो न, वही अर्जुन जैसा सिर है, वैसी ही ग्रीवा है, वे ही परिघ जैसी मोटी भुजाएँ हैं और उन्हीं के समान इसकी चाल - ढाल है; अतः यह अर्जुन के सिवा दूसरा कोई नहीं है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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