अष्टात्रिंश (38) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)
महाभारत: विराट पर्व: अष्टात्रिंश अध्याय: श्लोक 22-34 का हिन्दी अनुवाद
तब बृहन्नला ने कहा - राजकुमार! क्षत्रिय का यु़द्ध से भागना शूरवीरों की दृष्टि में धर्म नहीं है। युद्ध करके मर जाना अच्छा है; किन्तु भयभीत होकर भागना कदापि अचछा नहीं है। वैशम्पायन जी कहते हैं - राजन्! ऐसा कहकर कुन्ती नन्दन धनुजय भी उस उत्तम रथ से कूद पड़े और भागते हुए राजकुमार को पकड़ने के लिये अपनी लंबी चोटी हिलाते और लाल रंग की साड़ी एवं दुपट्टे को फहराते हुए उसके पीछे-पीछे दौड़े। उस समय चोटी हिला हिलाकर दौड़ते हुए अर्जुन को उस रूप में देखकर उन्हें न जानने वाले कुछ सैनिक ठहाका मारकर हँसने लगे। उन्हें शीघ्र गति से दौड़ते देख कौरव आपस में कहने लगे -। ‘यह कौन है जो राख में छिपी हुई अग्नि की भाँति नारी के वेश में छिपा है ? इसकी कुछ बातें तो पुरुषों जैसी हैं और कुछ स्त्रियों जैसी। ‘इसका स्वरूप तो अर्जुन से मिलता - जुलता है; किंतु वेश भूषा इसने नपुंसकों जैसी बना रक्खी है। देखो न, वही अर्जुन जैसा सिर है, वैसी ही ग्रीवा है, वे ही परिघ जैसी मोटी भुजाएँ हैं और उन्हीं के समान इसकी चाल - ढाल है; अतः यह अर्जुन के सिवा दूसरा कोई नहीं है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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