महाभारत विराट पर्व अध्याय 38 श्लोक 12-21

अष्टात्रिंश (38) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

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महाभारत: विराट पर्व: अष्टात्रिंश अध्याय: श्लोक 12-21 का हिन्दी अनुवाद


रथ, हाथी और घोड़े से यह कौरव दल खचाखच भरा हुआ है। पैदल सिपाहियों और असंख्य ध्वजाओं से व्याप्त है। इसलिये रण भूमि में इन शत्रुओं को देखकर ही मेरा हृदयश् व्यथित सा हो गया है। जहाँ द्रोण, भीष्म, कृप, विविंशति, अयवत्थामा, विकर्ण, सोमदत्त, बाहलिक तथा रथियों में श्रेष्ठ वीर राजा दुर्योधन हैं। जो सबके सब तेजस्वी, महान् धनुर्धर और युद्ध की कला में प्रवीण है। ये कौरवउ वीर मद से उन्मत्त हुए महान् गजराजों के समान जान पड़ते हैं। ये सबके सब ध्वजा पताकाओं से युक्त, नीति - निपुण, महाधनुर्धर तथा सम्पूर्ण अस्त्र विद्या का सुनिश्चित ज्ञान रखते हैं। इन पर विजय पाना सम्पूर्ण सेनाओं के लिये ही नहीं, इन्द्र सहित सम्पूर्ण देवताओं के लिये भी अत्यन्त कठिन है। इनके हाथियों पर भी पताकाएँ फहरा रही हैं। बड़े - बड़े रथ ध्वजाओं से सुशोभित हो रहे हैं। विचित्र आभूषणों से आभूषित घोड़े चारों ओर फैलकर विजय के लिये उद्योगशील प्रतीत होते हैं। ऐसे शूरवीर कौरवों को युद्ध में जीतने के लिये मैं दुर्बुद्धि बालक कहाँ आ गया ? सेना की व्यूह रचना करके प्रहार के लिये उद्यत खड़े हुए इन कौरवों को देखकर ही मेरे रोंगटे खड़े हो गये हैं। मुझे मूर्च्छा सी आ रही है।

वैशम्पायन जी कहते हैं - जनमेजय! मूर्ख उत्तर एक साधारण कोटि का मनुष्य था और छद्म वेशधारी सव्यसाची अर्जुन असाधारण वीर थे। अतः उनके प्रभाव को न जानने के कारण वह मूर्खतावश उनके पास रहकर भी उन्हीं के देखते - देखते यों विलाप करने लगा-। ‘बृहनले! मेरे पिता सूने नगर में उसकी रक्षा के लिये मुझे अकेला रखकर स्वयं सारी सेना साथ ले त्रिगर्तों से युद्ध करने के लिये गये हैं। मेरे पास यहाँ कोई सैनिक नहीं है। मैं अकेला बालक हूँ और मैंने अस्त्र विद्या में अभी अधिक परिश्रम भी नहीं किया है। ऐसी दशा में अस्त्र शस्त्रों के ज्ञाता और प्रौढ़ अवस्था वाले इल बहुसंख्यक कौरवों का सामना मैं नहीं कर सकूँगा। अतः तुम रथ लेकर लौट चलो’।

बृहन्नला ने कहा -! राजकुमार! तुम भय के कारण दीन होकर शत्रुओं का हर्ष बढ़ा रहे हो। अभी तो शत्रुओं ने युद्ध के मैदान में कोई पराक्रम भी प्रकट नहीं किया है। तुमने स्वयं ही कहा कि मुझे कौरवों के पास ले चलो; अतः जहाँ ये बहुत सी ध्वजाएँ फहरा रही हैं? वहीं तुम्हें ले चलूँगी। महाबाहो! जैसे गीध मांस पर टूट पड़ते हैं, उसी प्रकार जो गौओं को लूटने के लिये यहाँ आये हैं, उन आततायी कौरवों के बीच तुम्हें ले चलती हूँ। यदि ये पृथ्वी के लिये भी युद्ध ठानेंगे तो उसमें भी मैं तुम्हें ले चलूँगी।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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