महाभारत विराट पर्व अध्याय 38 श्लोक 35-42

अष्टात्रिंश (38) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

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महाभारत: विराट पर्व: अष्टात्रिंश अध्याय: श्लोक 35-42 का हिन्दी अनुवाद


‘मनुष्यों में धनुजय का वही स्थान है, जो देवताओं में इन्द्र का है। संसार में अर्जुन के सिवा दूसरा कौन वीर है, जो अकेला हम लोगों का सामना करने के लिये चला आये ?। ‘विराट के सूने नगर में उनका एक ही पुत्र देख-रेख के लिये रह गया था; सो यह बचपन (मूर्खता) के ही कारण हमारा सामना करने के लिये चला आया, अपने पुरुषार्थ से प्रेरित होकर नहीं। निश्चय ही कपट वेश में छिपे हुए कुन्ती पुत्र अर्जुन को अपना सारथि बनाकर उत्तर नगर से बाहर निकला था।। ‘मालूम होता है, हम लोगों को देखकर यह बहुत डर गया है; इसीलिये भागा जाता है और ये अर्जुन अवश्य ही उस भागते हुए राजकुमार को पकड़ लाना चाहते हैं’।

वैशम्पायन जी कहते हैं - भारत! इस प्रकार सभी कौरव अलग - अलग विचार विमर्श करते थे, किंतु छद्म वेश में छिपे हुए पाण्डु नन्दन अर्जुन तथा उत्तर को देखकर भी वे किसी निश्चय पर नहीं पहुँच पाते थे। उस समय दुर्योधन ने रथियों में श्रेष्ठ समस्त सैनिकों से इस प्रकार कहा - ‘अर्जुन, श्रीकृष्ण, बलराम और प्रद्युम्न भी संग्राम भूमि में हम लोगों का सामना नहीं कर सकते। यदि कोई दूसरा मनुष्य ही हीजड़े का रूप धारण करके इन गौओं के स्थान पर आयेगा, तो मैं उसे अपने तीखे बाणों से घायल करके धरती पर सुजा दूँगा। यह सपर्याुक्त वीरों में से ही कोई एक हो, तो भी अकेला समस्त कौरवों के साथ कैसे युद्ध कर सकता है ?’

उधर ‘यह अर्जुन ही तो नहीं हैं ?’ नहीं, वे नहीं जान पड़ते।’ इस प्रकार आपस में मन्त्रणा करते हुए समस्त कौरव महारथी अर्जुन के विषय में कोई निश्चय नहीं कर पाते थे। कई एक कहने लगे कि ‘अर्जुन की शक्ति महान् है। उनका पराक्रम इन्द्र के समान है। वे दृढ़ता पूर्वक शत्रुओं का बेधन करने वाले हैं। यदि वे ही आज युद्ध करने के लिये आ रहे हैं, तब तो समस्त सैनिकों का जीवन संशय में पड़ गया है।’ वे इस मनुष्य को वहाँ अर्जुन से भिन्न भी नहीं निश्चित कर पाते थे।। उधर अर्जुन ने भागते हुए उत्तर का पीछा करके सौ कदम दूर जाते जाते उसके केश पकड़ लिये। अर्जुन के द्वारा पकड़ लिये जाने पर विराट पुत्र उत्तर बड़ी दीनता के साथ आर्त की भाँति विलाप करने लगा। उत्तर बोला - सुन्दर कटि वाली कल्याणमयी बृहन्नले! तुम मेरी बात सुनो। मेरे रथ को शीघ्र लौटाओ; क्योंकि मनुष्य जीवित रहे, तो वह अनेक बार मंगल देखता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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