महाभारत वन पर्व अध्याय 33 श्लोक 80-90

त्रयस्त्रिंश (33) अध्‍याय: वन पर्व (अर्जुनाभिगमन पर्व)

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महाभारत: वन पर्व: त्रयस्त्रिंश अध्याय: श्लोक 80-90 का हिन्दी अनुवाद


कुरुनन्दन युधिष्ठिर! प्रायः नगर और जनपद में निवास करने वाले आबालवृद्ध सब लोग आपकी प्रशंसा करते हैं। कुत्ते चमडे़ की कुप्पी से रक्खा हुआ दूध, शूद्र में स्थित वेद, चोर में सत्य और नारी में स्थित बल जैसे अनुचित है, उसी प्रकार दुर्योधन में स्थित राजस्व भी संगत नहीं है। भारत! लोक में यह उपर्युक्त सत्य प्रवाद पहले से चला आ रहा है। स्त्रियां और बच्चे तक इसे नित्य किये जाने वाले पाठ की तरह दुहराते रहते हैं। शत्रुदमन! बड़े दुःख की बात है कि हमारे ही साथ आज आप इस दुरवस्था में पहुँच गये हैं और आप ही के कारण ऐसा उपद्रव आया कि हम सब लोग नष्ट हो गये।

महाराज! आप विजय में प्राप्त हुए धन का ब्राह्मणों को दान करने के लिये अस्त्र-शस्त्र आदि सभी आवश्यक सामग्रियों से सुसज्जित रथ पर बैठकर शीघ्र यहाँ से युद्ध के लिये निकलिये। जैसे सर्पों के समान भयंकर शूरवीर देवताओं से घिरे हुए वृत्रनाशक इन्द्र असुरों पर आक्रमण करते हैं, उसी प्रकार अस्त्र-विद्या के ज्ञाता और सुदृढ़ धनुष धारण करने वाले हम सब भाईयों से घिरे हुए आप श्रेष्ठ ब्राह्मणों से स्वतिवाचन कराकर आज ही हस्तिनापुर पर चढ़ाई कीजिये।

महाबली कुन्तीकुमार! जैसे इन्द्र अपने तेज से दैत्यों को मिट्टी में मिला देते हैं, उसी प्रकार आप अपने प्रभाव से शत्रुओं को मिट्टी में मिलाकर धृतराष्ट्र पुत्र दुर्योधन से अपनी राजलक्ष्मी को ले लीजिये। मनुष्यों में कोई ऐसा नहीं है, जो गाण्डीव धनुष से छूटे हुए विषैले सर्पों के समान भयंकर गृघ्रपंखयुक्त बाणों का स्पर्श सह सके।

भारत! इसी प्रकार जगत् में ऐसा कोई अश्व या गजराज या कोई वीर पुरुष भी नहीं है, जो रणभूमि में क्रोधपूर्वक विचरने वाले मुझ भीमसेन की गदा का वेग सह सके। कुन्तीनन्दन! संजय और कैकयवंशी वीरों तथा वृष्णि वंशावतंस भगवान् श्रीकृष्ण के साथ होकर हम संग्राम में अपना राज्य कैसे नहीं प्राप्त कर लेंगे? राजन्! आप विशाल सेना से सम्पन्न हो यहाँ प्रयत्नपूर्वक युद्ध ठानकर शत्रुओं के हाथ में गयी हुई पृथ्वी को उनसे छीन क्यों नहीं लेते?’


इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत अर्जुनाभिगमनपर्व में भीम वाक्य विषयक तैंतीसवां अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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