षडशीतितम (86) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
महाभारत: भीष्म पर्व: षडशीतितम अध्याय: श्लोक 44-57 का हिन्दी अनुवाद
राजेन्द्र! तब भीमसेन भी दुर्योधन आदि रथियों को युद्ध में जीतकर शिबिर को लौट गये। राजा दुर्योधन भी महायुद्ध में शान्तनुनन्दन भीष्म को घेरकर तुरंत ही अपने शिबिर को लौट गया। द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा, कृपाचार्य, शल्य तथा यदुवंशी कृतवर्मा- ये सारी सेना को घेरकर अपने शिबिर की ओर चल दिये। राजन! इसी प्रकार सात्यकि और द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न भी युद्ध में अपने योद्धाओं को घेरकर शिबिर की ओर प्रस्थित हुए। शत्रुओं को संताप देने वाले महाराज! इस प्रकार रात के समय आपके योद्धा पाण्डवों के साथ अपने-अपने शिबिर में लौट आये। महाराज! तत्पश्चात् पाण्डव तथा कौरव अपने शिबिर में जाकर आपस में एक-दूसरे की प्रशंसा करते हुए विश्राम करने लगे। तदनन्तर उभय पक्ष के शूरवीर ने सब ओर सैनिक गुल्मों को[1] नियुक्त करके विधिपूर्वक अपने-अपने शिबिरों की रक्षा की व्यवस्था की। फिर अपने शरीर से बाणों को निकालकर भाँति-भाँति के जल से स्नान करके स्वस्तिवाचन कराने के अनन्तर बन्दीजनों के मुख से अपनी स्तुति सुनते हुए वे सभी यशस्वी वीर गति और वाद्यों के शब्दों से क्रीड़ा-विनोद करने लगे। दो घड़ी तक वहाँ का सब कुछ स्वर्ग सदृश जान पड़ा। उस समय वहाँ महारथियों ने युद्ध की कोई बातचीत नहीं की। नरेश्वर! जिनमें हाथी और घोड़ों की अधिकता थी, उन दोनों पक्षों की सेनाओं में सब लोग परिश्रम से चूर-चूर हो रहे थे। रात के समय जब दोनों सेनाएं सो गयीं, उस समय वे देखने योग्य हो गयीं।
इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्म पर्व के अन्तर्गत भीष्मवध पर्व में सातवें दिन के युद्ध का विरामविषयक छियासीवां अध्याय पूरा हुआ
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गुल्म का अर्थ है- प्रधान पुरुषों से युक्त रक्षकदल, जिसमें 9 हाथी, 9 रथ, 27 घुड़सवार और 45 पैदल सैनिक होते हैं।
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