महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 119 श्लोक 41-60

एकोनविंशत्यधिकशततम (119) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

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महाभारत: भीष्म पर्व: एकोनविंशत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 41-60 का हिन्दी अनुवाद


प्रजानाथ! सम्पूर्ण लोकों के प्रिय भीष्म रथ से गिरना चाहते हैं, यह जानकर उस समय सम्पूर्ण देवताओं को भी महान आश्‍चर्य हुआ। देवताओं की वह बात सुनकर महातपस्वी शान्तनुनन्दन भीष्म समस्त आवरणों का भेदन करने वाले तीखे बाणों द्वारा विदीर्ण होने पर भी अर्जुन को जीतने का प्रयत्न न कर सके। महाराज! उस समय शिखण्डी ने कुपित होकर भरतवंशियों के पितामह भीष्म जी की छाती में नौ पैने बाण मारे। नरेश्‍वर! युद्ध में शिखण्डी के द्वारा आहत होकर भी कुरुवंशियों के पितामह भीष्म उसी प्रकार कम्पित नहीं हुए, जैसे भूकम्प होने पर भी पर्वत नहीं हिलता। तदनन्तर अर्जुन ने हंसकर गाण्डीव धनुष की टंकार करते हुए गंगानन्दन भीष्म को पच्चीस बाण मारे। तत्‍पश्‍चात पुनः उन्होंने अत्यन्त कुपित हो शीघ्रतापूर्वक सौ बाणों द्वारा भीष्म के सम्पूर्ण अंगों और सभी मर्म स्थानों में आघात किया। इसी प्रकार दूसरे लोगों ने भी सहस्रों बाणों द्वारा भीष्म जी को घायल किया। तब महारथी भीष्म ने भी तुरंत ही अपने बाणों द्वारा उन सबको बींध डाला। सत्य पराक्रमी भीष्म युद्ध स्थल में अन्य सब राजाओं द्वारा छोड़े हुए बाणों का झुकी हुई गांठ वाले अपने बाणों द्वारा तुरंत ही निवारण कर देते थे।

महारथी शिखण्डी ने रणक्षेत्र में जिनका प्रयोग किया था, वे शान पर चढ़ाकर तेज किये हुए सुवर्णमय पंखयुक्त बाण भीष्म जी के शरीर में कोई घाव या पीड़ा नहीं उत्पन्न कर सके। तत्‍पश्‍चात क्रोध में भरे हुए अर्जुन शिखण्डी को आगे रखकर पुनः भीष्म की ही ओर बढ़े। उन्होंने भीष्म जी के धनुष को काट डाला। तदनन्तर नौ बाणों से उन्हें घायल करके एक बाण से उनके ध्वज को भी काट डाला। फिर दस बाणों द्वारा उनके सारथी को कम्पित कर दिया। तब गंगानन्दन भीष्म ने दूसरा अत्यन्त प्रबल धनुष हाथ में लिया, परंतु अर्जुन ने तीन तीखे भल्लों द्वारा मार कर उसे भी तीन जगह से खण्डित कर दिया। उस महायुद्ध में भीष्म जो-जो धनुष हाथ में लेते थे कुन्तीकुमार अर्जुन उसे आधे निमेष में काट डालते थे। इस प्रकार उन्होंने रणक्षेत्र में उनके बहुत से धनुष खण्डित कर दिये। तब शान्तनुनन्दन भीष्म ने अर्जुन पर हाथ उठाना बंद कर दिया। फिर भी अर्जुन ने उन्हें पच्चीस बाण मारे।

इस प्रकार अत्यन्त घायल होने पर महाधनुर्धर भीष्म ने दुःशासन से कहा- ‘ये पाण्डव महारथी अर्जुन युद्ध में क्रुद्ध होकर अनेक सहस्र बाणों द्वारा मुझे घायल कर चुके हैं। इन्हें वज्रधारी इन्द्र भी युद्ध में जीत नहीं सकते। इसी प्रकार समस्त देवता, दानव तथा राक्षस वीर एक साथ आ जायें तो मुझे भी वे युद्ध में परास्त नहीं कर सकते, फिर दूसरे मानव महारथियों की तो बात ही क्या है।' इस प्रकार दुःशासन और भीष्म में जब बातचीत हो रही थी, उसी समय अर्जुन ने अपने तीखे बाणों द्वारा युद्ध स्थल में शिखण्डी को आगे करके भीष्म को क्षत-विक्षत कर दिया। तब वे पुनः दुःशासन से मुस्‍कराते हुए से बोले- ‘गाण्डीवधारी अर्जुन ने युद्ध स्थल में ऐसे बाण छोड़े हैं, जिनका स्पर्श वज्र और विद्युत के समान असह्य है। उनके तीखे बाणों से मैं अत्यन्त घायल हो गया हूँ। ये अविच्छिन्‍न रूप से छूने वाले समस्त बाण शिखण्डी के नहीं हो सकते। क्योंकि ये मेरे सुद्रढ़ कवच को छेदकर मर्मस्थानों में आघात कर रहे थे, ये बाण मेरे शरीर पर मुसल के समान चोट करते हैं। इनका स्पर्श वज्र और यमदण्ड के समान असह्य है। इनका वेग वज्र के समान होने के कारण निवारण करना कठिन है। ये शिखण्डी के बाण कदापि नहीं हो सकते।'

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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