महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 114 श्लोक 25-47

चतुर्दशाधिकशततम (114) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

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महाभारत: भीष्म पर्व: चतुर्दशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 25-47 का हिन्दी अनुवाद


तब अर्जुन ने सब ओर से बाणों का जाल-सा बिछाकर उन महारथी भूमिपालों को रोक दिया और तुरंत ही उन्हें मृत्युलोक में पहुँचा दिया। तब महारथी शल्य ने क्रीड़ा करते हुए से कुपित हो समरभूमि में झुकी हुई गांठ वाले भल्लों द्वारा अर्जुन की छाती में गहरी चोट पहुँचायी। यह देख अर्जुन ने पांच बाणों से उनके धनुष और दस्ताने को काटकर तीखें सायकों द्वारा उनके मर्म स्‍थल में गहरी चोट पहुँचायी। महाराज! फिर मद्रराज ने भी भार-साधन में समर्थ दूसरा धनुष लेकर रणभूमि में अर्जुन पर रोषपूर्वक तीन बाणों द्वरा प्रहार किया। वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण को पांच बाणों से घायल करके उन्‍होंने भीमसेन की भुजाओं तथा छाती में नौ बाण मारे।

नरेश्वर! तदनन्तर दुर्योधन की आज्ञा पाकर द्रोण तथा महारथी मगध नरेश उसी स्थान पर आये, जहाँ पाण्डूकुमार अर्जुन और भीमसेन- ये दोनों महारथी दुर्योधन की विशाल सेना का संहार कर रहे थे। भरतश्रेष्ठ! मगधराज जयत्सेन ने युद्ध के मैदान में भयानक अस्त्र-शस्त्र धारण करने वाले भीमसेन को आठ पैने बाणों द्वारा बींध डाला। तब भीमसेन ने जयत्सेन को दस बाणों से बींधकर फिर पांच बाणों से घायल कर दिया और एक भल्ल मारकर उसके सारथी को भी रथ की बैठक से नीचे गिरा दिया। फिर तो उसके घबराये हुए घोड़े चारों ओर भागने लगे और इस प्रकार वह मगध देश का राजा सारी सेना के देखते-देखते रणभूमि से दूर हटा दिया गया। इसी समय द्रोणाचर्य ने अवसर देखकर लोहे के बने हुए पैंसठ पैने बाणों द्वारा भीमसेन को बींध डाला। भारत! तब युद्ध की श्‍लाघा रखने वाले भीमसेन ने भी रणक्षेत्र में पिता के समान पूजनीय गुरु द्रोणाचार्य को पैंसठ भल्लों द्वारा घायल कर दिया। इधर अर्जुन ने लोहे के बने हुए बहुत से बाणों द्वारा सुशर्मा को घायल करके जैसे वायु महान मेघों को छिन्न-भिन्न कर देती है, उसी प्रकार उसकी सेना की धज्जियां उड़ा दी। तब भीष्म, राजा दुर्योधन और कौशल नरेश बृहद्बल- ये तीनों अत्यन्त कुपित होकर भीमसेन और अर्जुन पर चढ़ आये।

इसी प्रकार शूरवीर पाण्डव तथा द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न ये रणक्षेत्र में मुंह फैलाये हुए यमराज के समान प्रतीत होने वाले भीष्म पर टूट पड़े। शिखण्डी ने भरत कुल के पितामह भीष्म के निकट पहुँचकर उन महारथी भीष्म से सम्भावित भय को त्यागकर बड़े हर्ष के साथ उन पर धावा किया। युधिष्ठिर आदि कुन्तीपुत्र रणभूमि में शिखण्डी को आगे करके समस्त सृ़ंजयों को साथ ले भीष्म के साथ युद्ध करने लगे। इसी प्रकार आपके समस्त योद्धा ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने वाले भीष्म को युद्ध में आगे रखकर शिखण्डी आदि पाण्डव महारथियों का सामना करने लगे। तदनन्तर वहाँ भीष्म की विजय के उद्देश्य से कौरवों का पाण्डवों के साथ भयंकर युद्ध होने लगा। प्रजानाथ! उस युद्ध रूपी जूए में आपके पुत्रों की ओर से विजय के लिये भीष्म को ही दांव पर लगाया था। इस प्रकार वहाँ विजय अथवा पराजय के लिये रणद्यूत उपस्थित हो गया। राजेन्द्र! उस समय धृष्टद्युम्न ने अपनी समस्त सेनाओं को प्रेरणा देते हुए कहा- ‘श्रेष्ठ रथियों! गंगानन्दन भीष्म पर धावा करो। उनसे तनिक भी भय न मानो’। सेनापति का यह वचन सुनकर पाण्डवों की विशालवाहिनी उस महासमर में प्राणों का मोह दौड़कर तुरंत ही भीष्म की ओर बढ़ चली। महाराज! रथियों में श्रेष्ठ भीष्म ने भी अपने उपर आती हुई उस विशाल सेना को युद्ध के लिए उसी प्रकार ग्रहण किया, जैसे तटभूमि को महासागर।


इस प्रकार श्री महाभारत भीष्म पर्व के अन्तर्गत भीष्मवध पर्व में भीमसेन और अर्जुन का पराक्रमविषयक एक सौ चौदहवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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