महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 7 श्लोक 44-54

सप्‍तम (7) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)

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महाभारत: द्रोणपर्व: सप्‍तम अध्याय: श्लोक 44-54 का हिन्दी अनुवाद
  • राजन! उस समय द्रोणाचार्य को युद्ध के लिये उद्यत देख सृंजयों सहित पाण्‍डवों ने पृथक-पृथक बाणों की वर्षा करते हुए उनका सामना किया। (44)
  • जैसे वायु बादलों को उड़ाकर छिन्‍न–भिन्‍न कर देती है, उसी प्रकार द्रोणाचार्य के द्वारा क्ष‍त-विक्षत हुई पांचालों सहित पाण्‍डवों की विशाल सेना तितर-बितर हो गयी। (45)
  • द्रोण ने युद्ध में बहुत से दिव्‍यास्‍त्रों का प्रयोग करके क्षण-भर में पाण्‍डवों तथा सृंजयों को पीड़ित कर दिया। (46)
  • जैसे इन्‍द्र दानवों को पीड़ा देते हैं, उसी प्रकार द्रोणाचार्य से पीड़ित हो धृष्टद्युम्न आदि पांचाल योद्धा भय से काँपने लगे। (47)
  • तब दिव्‍यास्‍त्रों के ज्ञाता यज्ञसेनकुमार शूरवीर महारथी धृष्‍टद्युम्‍न ने अपने बाणों की वर्षा से द्रोणाचार्य की सेना को बारंबार घायल किया। (48)
  • बलवान द्रुपदपुत्र ने अपने बाणों की वर्षा से द्रोणाचार्य की बाणवृष्टि को रोककर समस्‍त कौरव सैनिकों को मारना आरम्‍भ किया। (49)
  • तब महाधनुर्धर द्रोणाचार्य ने अपनी सेना को काबू में करके उसे युद्धस्‍थल में स्थिर भाव से खड़ा कर दिया और द्रुपदकुमार पर धावा किया। (50)
  • जैसे क्रोध में भरे हुए इन्‍द्र सहसा दानवों पर बाणों की बौछार करतें हैं, उसी प्रकार द्रोणाचार्य ने धृष्‍टद्युम्‍न पर बाणों की बड़ी भारी वर्षा आरम्‍भ कर दी। (51)
  • जैसे सिंह दूसरे मृगों को भगा देता है, उसी प्रकार द्रोणाचार्य के बाणों से विकम्पित हुए पाण्‍डव तथा सृंजय बारंबार युद्ध का मैदान छोड़कर भागने लगे। (52)
  • राजन! बलवान द्रोणाचार्य पाण्‍डवों का सेना में अलात चक्र की भाँति चारों ओर चक्‍कर लगाने लगे। यह एक अद्भुत-सी बात हुई। (53)
  • शास्‍त्रोक्‍त विधि से निर्मित हुआ आचार्य द्रोण का वह श्रेष्‍ठ रथ आकाशचारी गन्‍धर्वनगर के समान जान पड़ता था। वायु के वेग से उसकी पताका फहरा रही थी। वह रथी के मन को आह्लाद प्रदान करने वाला था। उसके घोड़े उछल-उछलकर चल रहे थे। उसका ध्‍वज-दण्‍ड स्‍फटिक मणि के समान स्‍वच्‍छ एवं उज्‍जवल था। वह शत्रुओं को भयभीत करने वाला था। उस श्रेष्‍ठ रथ पर आरूढ़ होकर द्रोणाचार्य शत्रु सेना का संहार कर रहे थे। (54)
इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्‍तर्गत द्रोणाभिषेकपर्व में द्रोणपराक्रमविषयक सातवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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