महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 7 श्लोक 22-43

सप्‍तम (7) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)

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महाभारत: द्रोणपर्व: सप्‍तम अध्याय: श्लोक 22-43 का हिन्दी अनुवाद
  • अपनी भुजाओं से सुशोभित होने वाले भीष्‍म ने तो युद्ध में कुन्‍तीकुमारों की रक्षा की है; परंतु कर्ण अपने तीखे बाणों द्वारा उनका विनाश कर डालेगा। (22)
  • प्रजानाथ! इस प्रकार प्रसन्‍न होकर परस्‍पर बात करते तथा राधानन्‍दन कर्ण की प्रंशसा और आदर करते हुए आपके सैनिक युद्ध के लिये चले। उस समय द्रोणाचार्य ने हमारी सेना के द्वारा शकटव्‍यूह का निर्माण किया था। (23-24)
  • राजन! हमारे महामनस्‍वी शत्रुओं की सेना का क्रौंचव्‍यूह दिखायी देता था। भारत! धर्मराज युधिष्ठिर ने स्‍वयं ही प्रसन्‍नता पूर्वक उस व्‍यूह की रचना की थी। (25)
  • पाण्‍डवों के उस व्‍यूह के अग्रभाग में अपनी वानरध्‍वजा को बहुत ऊँचे तक फहराते हुए पुरुषोतम भगवान श्रीकृष्‍ण और अर्जुन खड़े हुए थे। (26)
  • अमित तेजस्‍वी अर्जुन का वह ध्वज सूर्य के मार्ग तक फैला हुआ था। वह सम्‍पूर्ण सेनाओं के लिये श्रेष्‍ठ आश्रय तथा समस्‍त धनुर्धरों के तेज का पुंज था। वह ध्‍वज पाण्‍डुनन्‍दन महात्‍मा युधिष्ठिर की सेना को अपनी दिव्‍य प्रभा से उद्भासित कर रहा था। (27)
  • जैसे प्रलयकाल में प्रज्‍वलित सूर्य सारी वसुधा को देदीप्‍यमान करते दिखाये देते हैं, उसी प्रकार बुद्धिमान अर्जुन का वह विशाल ध्‍वज सर्वत्र प्रकाशमान दिखायी देता था। (28)
  • समस्‍त योद्धाओं में अर्जुन श्रेष्‍ठ हैं, धनुषों में गाण्‍डीव श्रेष्‍ठ है, सम्‍पूर्ण चेतन सत्‍ताओं में सच्चिदानन्‍दघन वसुदेवनन्‍दन भगवान श्रीकृष्‍ण श्रेष्‍ठ हैं और चक्रों में सुदर्शन श्रेष्‍ठ है। (29)
  • श्‍वेत घोड़ों से सुशोभित वह रथ इन चार तेजों को धारण करता हुआ शत्रुओं के सामने उठे हुए कालचक्र के समान खड़ा हुआ। इस प्रकार वे दोनों महात्‍मा श्रीकृष्‍ण और अर्जुन अपनी सेना के अग्रभाग में सुशोभित हो रहे थे। (30-31)
  • राजन! आपकी सेना के प्रमुख भाग में कर्ण और शत्रुओं की सेना के अग्रभाग में अर्जुन खड़े थे। वे दोनों उस समय विजय के लिये रोषावेश में भरकर एक-दूसरे का वध करने की इच्‍छा से रणक्षेत्र में परस्‍पर दृष्टिपात करने लगे। (32)
  • तदनन्‍तर सहसा महारथी द्रोणाचार्य आगे बढ़े। फिर तो भयंकर आर्तनाद के साथ सारी पृथ्वी काँप उठी। (33)
  • इसके बाद प्रचण्‍ड वायु के वेग से बड़े जोर की धूल उठी, जो रेशमी वस्‍त्रों के समुदाय-सी प्रतीत होती थी। उस तीव्र एवं भयंकर धूल ने सूर्य सहित समूचे आकाश को ढक लिया। आकाश में मेघों की घटा नहीं थी, तो भी वहाँ से मास, रक्‍त तथा हड्डियों की वर्षा होने लगी। (34-35)
  • नरेश्‍वर! उस समय गीध, बाज, बगले, कंक और हजारों कौवे आपकी सेना के ऊपर-ऊपर उड़ने लगे। (36)
  • गीदड़ जोर-जोर से दारुण एवं भयदायक बोली बोलने लगे और मांस खाने तथा रक्‍त पीने की इच्‍छा से बारंबार आपकी सेना को दाहिने करके घूमने लगे। (37)
  • उस समय एक प्रज्‍वलित एवं देदीप्‍यमान उल्‍का युद्धस्‍थल में अपने पुच्‍छभाग द्वारा सबको घेरकर भारी गर्जना और कम्‍पन के साथ पृथ्‍वी पर गिरी। (38)
  • राजन! सेनापति द्रोण के युद्ध के लिये प्रस्‍थान करते ही सूर्य के चारों ओर बहुत बड़ा घेरा पड़ गया और बिजली चमकने के साथ ही मेघ-गर्जना सुनायी देने लगी। (39)
  • ये तथा और भी बहुत से भयंकर उत्‍पात प्रकट हुए, जो युद्ध में वीरों की जीवन-लीला के विनाश की सूचना देने वाले थे। (40)
  • तदनन्‍तर एक-दूसरे के वध की इच्‍छा वाले कौरवों तथा पाण्‍डवों की सेनाओं में भयंकर युद्ध होने लगा और उनके कोलाहल में सारा जगत व्‍याप्‍त हो गया। (41)
  • कोध्र में भरे हुए पाण्‍डव तथा कौरव विजय की अभिलाषा लेकर एक-दूसरे को तीखे अस्‍त्र-शस्त्र द्वारा मारने लगे। वे सभी योद्धा प्रहार करने में कुशल थे। (42)
  • महाधनुर्धर महातेजस्‍वी द्रोणाचार्य ने पाण्‍डवों की विशाल सेना पर सैकड़ों पैने बाणों की वर्षा करते हुए बड़े वेग से आक्रमण किया। (43)

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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