महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 19 श्लोक 22-39

एकोनविंश (19) अध्याय: द्रोण पर्व (संशप्‍तकवध पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व: एकोनविंश अध्याय: श्लोक 22-39 का हिन्दी अनुवाद
  • श्रीकृष्‍ण का वह वचन सुनकर अर्जुन ने बड़ी उतावली के साथ वायव्यास्त्र का प्रयोग करके शत्रुओं द्वारा की हुई उस बाण-वर्षा को नष्‍ट कर दिया। (22)
  • तदनन्‍तर भगवान वायुदेव ने घोड़े, रथ और आयुधों सहित संशप्तक समूहों को वहाँ से सूखे पत्‍तों के ढेर की भाँति उड़ाना आरम्‍भ किया। (23)
  • माननीय महाराज! वायु के द्वारा उड़ाये जाते हुए वे सैनिक समय-समय पर वृक्षों से उड़ने वाले पक्षियों के समान शोभा पा रहे थे। (24)
  • उन सबको व्‍याकुल करके अर्जुन अपने पैने बाणों से शीघ्रतापूर्वक उनके सौ-सौ और हजार-हजार योद्धाओं का एक साथ संहार करने लगे। (25)
  • उन्‍होंने भल्लों द्वारा उनके सिर उड़ा दिये, आयुधों सहित भुजाएँ काट डालीं और हाथी की सूँड़ के समान मोटी जाँघों को भी बाणों द्वारा पृथ्वी पर काट गिराया। (26)
  • धनंजय ने शत्रुओं को शरीर के अनेक अंगो से विहीन कर दिया। किन्‍हीं की पीठ काट ली तो किन्‍हीं के पैर उड़ा दिये। कितने ही सैनिक बाहु, पसली और नेत्रों से वंचित होकर व्‍याकुल हो रहे थे। (27)
  • उन्‍होंने गन्‍धर्व नगरों के समान प्रतीत होने वाले और विधिवत सजे हुए रथों के अपने बाणों द्वारा टुकड़े-टुकड़े कर दिये और शत्रुओं को हाथी, घोड़े एवं रथों से वंचित कर दिये। (28)
  • वहाँ कहीं-कहीं रथवर्ती ध्वजों के समूह ऊपर से कट जाने के कारण मुण्डित तालवनों के समान प्रकाशित हो रहे थे। (29)
  • पताका, अंकुश और ध्‍वजों से विभूषित गजराज वहाँ इन्‍द्र के वज्र से मारे हुए वृक्षयुक्‍त पर्वतों के समान ऊपर चढ़े हुए योद्धाओं सहित धराशायी हो गये। (30)
  • चामर, माला और कवचों से युक्‍त बहुत-से-घोड़े अर्जुन के बाणों से मारे जाकर सवारों सहित धरती पर पड़े थे। उनकी आँतें और आँखें बाहर निकल आयी थीं। (31)
  • पैदल सैनिकों के खड्ग एवं नखर कटकर गिरे हुए थे। कवच, ऋष्टि और शक्तियों के टुकड़े-टुकड़े हो गये थे। कवच कट जाने से अत्‍यन्‍त दीन हो वे मरकर पृथ्वी पर पड़े थे। (32)
  • कितने ही वीर मारे गये थे और कितने ही मारे जा रहे थे। कुछ गिर गये थे और कुछ गिर रहे थे। कितने ही चक्‍कर काटते और आघात करते थे। इन सबके द्वारा वह युद्धस्‍थल अत्‍यन्‍त क्रूरतापूर्ण जान पड़ता था। (33)
  • रक्‍त की वर्षा से वहाँ की उड़ती हुई भारी धूलराशि शान्‍त हो गयी और सैकड़ों कबन्‍धों[1] आच्‍छादित होने के कारण उस भूमि पर चलना कठिन हो गया। (34)
  • रणक्षेत्र में अर्जुन का वह भयंकर एवं बीभत्‍स रथ प्रलयकाल में पशुओं[2] का संहार करने वाले रुद्रदेव के क्रीड़ास्‍थल सा प्रतीत हो रहा था। (35)
  • अर्जुन के द्वारा मारे जाते हुए रथ और हाथी व्‍याकुल होकर उन्‍हीं की ओर मुँ‍ह करके प्राणत्‍याग करने के कारण इन्‍द्रलोक के अतिथि हो गये। (36)
  • भरतश्रेष्‍ठ! वहाँ मारे गये महारथियों से आच्‍छादित हुई वह सारी भूमि सब ओर से प्रेतों द्वारा घिरी हुई सी जान पड़ती थी। (37)
  • जब इधर सव्‍यसाची अर्जुन उस युद्ध में भली प्रकार लगे हुए थे, उसी समय अपनी सेना का व्‍यूह बनाकर द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर पर आक्रमण किया। (38)
  • व्‍यूह-रचनापूर्वक प्रहार करने में कुशल योद्धाओं ने युधिष्ठिर को पकड़ने की इच्‍छा से तुरंत ही उन पर चढ़ाई कर दी, वह युद्ध बड़ा भयानक हुआ। (39)
इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्‍तर्गत संशप्‍तकवधपर्व में अर्जुन-संशप्‍तक युद्धविषयक उन्‍नीसवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बिना सिर की लाशों
  2. जगत के जीवों

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