षट्षष्टितम (66) अध्याय: कर्ण पर्व
महाभारत: कर्ण पर्व: षट्षष्टितम अध्याय: श्लोक 21-36 का हिन्दी अनुवाद
अब मुझे इस जीवन से तथा राज्य से क्या प्रयोजन है जबकि आज युद्ध में शोभा पाने वाले कर्ण ने मुझे इस प्रकार क्षत-विक्षत कर डाला है। पहले कभी भीष्म, द्रोण और कृपाचार्य से भी मुझे युद्ध स्थल में जो अपमान नहीं प्राप्त हुआ था, वही आज महारथी सूत पुत्र से युद्ध में प्राप्त हो गया है। कुन्तीनन्दन! इसीलिये मैं तुमसे पूछता हूँ कि आज जिस प्रकार सकुशल रहकर तुमने कर्ण को मारा है, वह सारा समाचार मुझे पूर्ण रुप से बताओ। जो युद्ध में इन्द्र के समान बलवान यमराज के समान पराक्रमी और परशुराम जी के समान अस्त्र-शस्त्रों का ज्ञाता था, वह कर्ण कैसे मारा गया। जो सम्पूर्ण युद्ध की कला में कुशल, विख्यात महारथी, धनुर्धरों में श्रेष्ठ तथा सब शत्रुओं में प्रधान पुरुष था, जिसे पुत्रसहित धृतराष्ट्र ने तुम्हारा सामना करने के लिये ही सम्मान पूर्वक रखा था, वह महाबली राधापुत्र कर्ण तुम्हारे द्वारा कैसे मारा गया। पुरुषप्रवर अर्जुन! दुर्योधन रणक्षेत्र में सम्पूर्ण योद्धाओं में से कर्ण को ही तुम्हारी मृत्यु मानता था। कुन्तीपुत्र! पुरुषसिंह! तुमने कैसे युद्ध में उस कर्ण को मारा है कर्ण जिस प्रकार तुम्हारे द्वारा मारा गया है, वह सब समाचार मुझे बताओ। पुरुषसिंह। जैसे सिंह रुरु नामक मृग का मस्तक काट लेता है, उसी प्रकार तुमने समस्त सुहृदों के देखते-देखते जो जूझते हुए कर्ण का सिर धड़ से अलग कर दिया है, वह किस प्रकार सम्भव हुआ। अर्जुन! समरांगण में जो सूतपुत्र कर्ण सम्पूर्ण दिशाओं और विदिशाओं में तुम्हें पाने के लिये चक्कर लगाता था और तुम्हारा पता बताने वाले को हाथी के समान छ: बैल देना चाहता था, वही दुरात्मा सूतपुत्र क्या इस समय रणभूमि में तुम्हारे द्वारा कंकपत्रयुक्त तीखे बाणों से मारा जाकर पृथ्वी पर सो रहा है आज रणक्षेत्र में सूतपुत्र को मारकर तुमने मेरा यह परम प्रिय कार्य पूर्ण किया। जो सदा सम्मानित होकर घमंड में भरा हुआ सूतपुत्र तुम्हारे लिये सब ओर धावा किया करता था, अपने को शूरवीर मानने वाले उस कर्ण को समरांगण में उसके साथ युद्ध करके क्या तुमने मार डाला है। तात! जो रणक्षेत्र में तुम्हारा पता बताने के लिये दूसरों को हाथी-घोड़ों से युक्त सोने का बना हुआ सुन्दर रथ देने का हौसला रखता और सदा तुमसे होड़ लगाता था, वह पापी क्या युद्ध स्थल में तुम्हारे द्वारा मार डाला गया। जो शौर्य के मद से उन्मत्त हो कौरवों की सभा में सदा बढ़-बढ़कर बातें बनाया करता था और दुर्योधन का अत्यन्त प्रिय था, क्या उस पापी कर्ण को तुमने आज मार डाला। क्या आज युद्ध में तुम से भिड़कर तुम्हारे द्वारा धनुष से छोड़े गये लाल अंगों वाले आकाशचारी बाणों से सारा शरीर छिन्न-भिन्न हो जाने के कारण वह पापी कर्ण आज पृथ्वी पर पड़ा है? क्या उसके मरने से दुर्योधन की दोनों बांहे टूट गयीं? जो राजाओं के बीच में दुर्योधन का हर्ष बढ़ाता हुआ घमंड में भरकर सदा मोहवश यह डींग हांकता था कि मैं अर्जुन का वध कर सकता हूँ। क्या उसकी वह बात आज निष्फल हो गयी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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