पृथ्वी देवी

पृथ्वी देवी महाभारत के उल्लेखानुसार राजा पृथु ने अपनी पुत्री सम इसे दत्तक लिया था इसलिए इसे पृथ्वी कहते है।

  • यह विभिन्न जनपदों, नगरों जातियों, पहाड़ों, नदियों आदि की माता हैं[1]करोड़ योजन इसका क्षेत्रफल है। इसका बाह्म विस्तार योजनाग्र से आंरभ होता है जो मेरु से हर दिशा में 1 करोड़ तथा 3 करोड़ योजन चारों दिशाओं में पृथ्वी की भीतर परिधि है जो पर्यास के नक्षत्र-मण्डल के बराबर की है[2] इसमें सात द्वीप है जो स्वायंभुव मनु के आश्रित थे। [3]



टीका टिप्पणी और संदर्भ

पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 322 |

  1. मत्स्य.10.1.34; वायु.42.78-81; 50.2-4;63.3-4; 74.30। 50 100 1/2 करोड़ मत्स्य.
  2. मत्स्य. 124.12; वायु. 50.67.75
  3. मत्स्य. 166.6; 258.11; वायु. 33.4-5

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