महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 49 श्लोक 33-48

एकोनपंचाशत्‍तम। 49) अध्‍याय: उद्योग पर्व। यानसंधि पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: एकोनपंचाशत्‍तम अध्याय: श्लोक 33-48 का हिन्दी अनुवाद
  • वैशम्पायनजी कहते हैं- महाराज जनमेजय! कर्ण की बात सुनकर शान्तनुनन्दन भीष्‍म ने राजा धृतराष्‍ट्र को सम्बोधित करके पुन: इस प्रकार कहा।33)
  • ‘राजन! यह कर्ण जो प्रतिदिन यह डींग हांका करता है कि मैं पाण्‍डवों को मार डालूंगा, वह व्यर्थ है। मेरी राय में यह महात्मा पाण्‍डवों की सोलहवीं कला के बराबर भी नहीं है। (34)
  • ‘तुम्हारे दुरात्मा पुत्रों पर अन्याय के फलस्वरूप जो यह महान संकट आने वाला है, वह सब इस दूषित बुद्धि वाले सूतपुत्र कर्ण की ही करतूत समझो। (35)
  • ‘तुम्‍हारे मंदबुद्धि पुत्र दुर्योधन ने इसी का सहारा लेकर शत्रुओं का दमन करने वाले उन वीर देवपुत्र पाण्‍डवों का अपमान किया है। (36)
  • ‘आज से पहले समस्‍त पाण्‍डवों ने मिलकर अथवा उनमें से एक-एक ने अलग-अलग जैसे-जैसे दुष्‍कर प्रयास किये हैं, वैसा कौन-सा कठिन पुरुषार्थ इस सूतपुत्र ने पहले कभी किया है। (37)
  • ‘जब विराट नगर में अर्जुन ने अपना पराक्रम दिखाते हुए इसके सामने ही इसके प्‍यारे भाई को मार डाला था, तब इसने सब कुछ अपनी आँखों से देखकर भी अर्जुन का क्‍या बिगाड़ लिया? (38)
  • ‘जब धनंजय ने अकेले ही समस्‍त कौरवों पर आक्रमण किया और सबको मूर्च्छित करके उनके वस्‍त्र छीन लिये थे, उस समय यह कर्ण क्‍या कहीं परदेश चला गया था? (39)
  • ‘घोष यात्रा के समय जब गंधर्व लोग तुम्‍हारे पुत्र को कैद करके लिये जा रहे थे, उस समय यह सूतपुत्र कहाँ था? जो इस समय सांड़ की तरह डंकार रहा है। (40)
  • ‘वहाँ भी तो महात्‍मा भीमसेन, अर्जुन और नकुल-सहदेव ही मिलकर उन गन्‍धर्वों को परास्‍त किया था। (41)
  • ‘भरतश्रेष्‍ठ! तुम्‍हारा भला हो। यह कर्ण व्‍यर्थ ही शेखी बघारता रहता है। इसकी कही हुई बहुत-सी बातें इसी तरह झूठी हैं। यह तो धर्म और अर्थ-दोनों का ही लोप करने वाला है’। (42)
  • भीष्‍मजी की यह बात सुनकर महामना द्रोणाचार्य ने समस्‍त राजाओं के मध्‍य में उनकी प्रशंसा करते हुए राजा धृतराष्‍ट्र से इस प्रकार कहा (43)
  • ‘नरेश्‍वर! भरत कुलतिलक भीष्‍म जी ने कहा है, वही कीजिये। जो लोग अर्थ और काम के लोभी हैं, उनकी बातें आपको नहीं माननी चाहिये। (44)
  • ‘मैं तो युद्ध से पहले पाण्‍डवों के साथ संधि करना ही अच्‍छा समझता हूँ। अर्जुन ने जो बात कही है और संजय ने उनका जो संदेश यहाँ सुनाया है, मैं वह सब जानता और समझता हूँ। पाण्‍डुनंदन अर्जुन वैसा करके ही रहेंगे। (45)
  • ‘तीनों लोकों में अर्जुन के समान कोई धनुर्धर नहीं है’। (46)
  • द्रोणाचार्य और भीष्‍म की बातें सार्थक और सारगर्भित थीं, तथापि उनकी अवहेलना करके राजा धृतराष्‍ट्र पुन: संजय से पाण्‍डवों का समाचार पूछने लगे। (47)
  • जब राजा धृतराष्‍ट्र ने भीष्‍म और द्रोणाचार्य से भी अच्‍छी तरह वार्तालाप नहीं किया, तभी समस्‍त कौरव अपने जीवन से निराश हो गये। (48)

इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अंतर्गत यानसंधिपर्व में भीष्‍मद्रोणवचनविषयक उनचासवां अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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