सप्तषष्टितम (67) अध्याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: सप्तषष्टितम अध्याय: श्लोक 155-164 का हिन्दी अनुवाद
एकान्त में रहकर वह पाँचों पुरुषों प्रवर पाण्डवों के मन को मुग्ध किये रहती थी। सिद्धि और धृति नाम वाली जो दो देवियां हैं, वे ही पाँचों पाण्डवों की दोनों माताओं- कुन्ती और माद्री के रूप में उत्पन्न हुई थी। सुबल-नरेश की पुत्री गान्धारी के रूप में साक्षात मति देवी ही प्रकट हुई थी। राजन! इस प्रकार तुम्हें देवताओं, असुरों, गन्धर्वों, अप्सराओं तथा राक्षसों के अंशों का अवतरण बताया गया। युद्ध में उन्मत्त रहने वाले जो-जो राजा इस पृथ्वी पर उत्पन्न हुए थे और जो-जो महात्मा क्षत्रिय यादवों के विशाल कुल में प्रकट हुए थे, वे ब्राह्मण, क्षत्रिय अथवा वैश्य जो भी रहे हैं, उन सबके स्वरूप का मैंने परिचय तुम्हें दे दिया है। मनुष्य को चाहिये कि वह दोष-दृष्टि का त्याग करके इस अंशावरतरण के प्रसंग को सुने। यह धन, यश, पुत्र, आयु तथा विजय की प्राप्ति कराने वाला है। देवता, गन्धर्व तथा राक्षसों के इस अंशावतरण को सुनकर विश्व की उत्पत्ति और प्रलय के अधिष्ठान परमात्मा के स्वरूप को जानने वाला प्राज्ञ बड़ी-बड़ी विपत्तियों में भी दुखी नहीं होता। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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