षड्-विंश (26) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
महाभारत: अनुशासन पर्व: षड्-विंश अध्याय: श्लोक 88-96 का हिन्दी अनुवाद
गंगा जी गिरिराज हिमालय की पुत्री, भगवान शंकर की पत्नी तथा स्वर्ग और पृथ्वी की शोभा हैं। राजन! वे भूमण्डल पर निवास करने वाले प्राणियों का कल्याण करने वाली, परम सौभाग्यवती तथा तीनों लोकों को पुण्य प्रदान करने वाली हैं। श्री भागीरथी मधु का स्रोत एवं पवित्र जल की धारा बहाती हैं। जलती हुई घी की ज्वाला के समान उनका उज्ज्वल प्रकाश है। वे अपनी उताल तरंगों तथा जल में स्नान-संध्या करने वाले ब्राह्मणों से सुशोभित होती हैं। वे जब स्वर्ग से नीचे की ओर चलीं, तब भगवान शिव ने उन्हें अपने सिर पर धारण किया। फिर हिमालय पर्वत पर आकर वहाँ से इस पृथ्वी पर उतरी हैं। श्री गंगा जी स्वर्गलोक की जननी हैं। सबका कारण, सबसे श्रेष्ठ, रजोगुणरहित, अत्यन्त सूक्ष्म, मरे हुए प्राणियों के लिये सुखद शय्या, तीव्र वेग से बहने वाली, पवित्र जल का स्रोत बहाने वाली, यश देने वाली, जगत की रक्षा करने वाली, सत्स्वरूपा तथा अभीष्ट को सिद्ध करने वाली भगवती गंगा अपने भीतर स्नान करने वालों के लिये स्वर्ग का मार्ग बन जाती हैं। क्षमा, रक्षा तथा धारण करने में पृथ्वी के समान और तेज में अग्नि एवं सूर्य के समान शोभा पाने वालों के गंगा जी ब्राह्मण जाति पर सदा अनुग्रह करने के कारण सुब्रह्मण्य कार्तिकेय तथा ब्राह्मणों के लिये भी प्रिय एवं सम्मानित हैं। ऋषियों द्वारा जिनकी स्तुति होती है, जो भगवान विष्णु के चरणों से उत्पन्न, अत्यन्त प्राचीन तथा परम पावन जल से भरी हुई हैं, उन गंगा जी की जगत में जो लोग मन के द्वारा भी सब प्रकार से शरण लेते हैं, वे देहत्याग के पश्चात ब्रह्मलोक में जाते हैं। जैसे माता अपने पुत्रों को स्नेहभरी दृष्टि से देखती है और उनकी रक्षा करती है, उसी प्रकार गंगा जी सर्वात्मभाव से अपने आश्रय में आये हुए सर्वगुणसम्पन्न लोकों को कृपादृष्टि से देखकर उनकी रक्षा करती हैं; अतः जो ब्रह्मलोक को प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं, उन्हें अपने मन को वश में करके सदा मातृभाव से गंगा जी की उपासना करनी चाहिए। जो अमृतमय दूध देने वाली, गौ के समान सबको पुष्ट करने वाली, सब कुछ देखने वाली, सम्पूर्ण जगत के उपयोग में आने वाली, अन्न देने वाली तथा पर्वतों को धारण करने वाली हैं, श्रेष्ठ पुरुष जिनका आश्रय लेते हैं और जिन्हें ब्रह्मा जी भी प्राप्त करना चाहते हैं; तथा जो अमृतस्वरूप हैं, उन भगवती गंगा जी का सिद्धिकामी जितात्मा पुरुषों को अवश्य आश्रय लेना चाहिये। राजा भगीरथ अपनी उग्र तपस्या से भगवान शंकर सहित सम्पूर्ण देवताओं को प्रसन्न करके गंगा जी को इस पृथ्वी पर ले आये। उनकी शरण में जाने से मनुष्य को इहलोक और परलोक में भय नहीं रहता। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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