चतु:पंचाशत्तम (54) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
महाभारत: भीष्म पर्व: चतु:पंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 63-85 का हिन्दी अनुवाद
भरतश्रेष्ठ! कलिंग सेना के अग्रभाग में राजा श्रुतायु को देखकर भीमसेन उनका सामना करने के लिये आगे बढ़े। उन्हें आते देख अमेय आत्मबल से सम्पन्न कलिंगराज श्रतायु ने भीमसेन की छाती में दो बाण मारे। कलिंगराज के बाणों से आहत हो भीमसेन अंकुश की मार खाये हुए हाथी के समान क्रोध से जल उठे, मानो घी की आहुति पाकर आग प्रज्वलित हो उठी हो। इसी समय भीमसेन के सारथि अशोक ने एक सुवर्णभूषित रथ लेकर उसे भीम के पास पहुँचा कर उन्हें भी रथ से सम्पन्न कर दिया। शत्रुसुदन कुन्तीकुमार भीम तुरन्त ही उस रथ पर आरूढ़ हो कलिंगराज की ओर दौड़े और बोले- ‘अरे! खड़ा रह, खड़ा रह’। तब बलवान् श्रुतायु ने कुपित हो अपने हाथ की फुर्ती दिखाते हुए बहुत से पैने बाण भीमसेन पर चलाये। महाराज! महामना कलिंगराज के द्वारा श्रेष्ठ धनुष से छोड़े हुए नौ तीखे बाणों से घायल हो भीमसेन डंडे की चोट खाये हुए सर्प की भाँति अत्यंत कुपित हो उठे। बलवानों में श्रेष्ठ कुन्तीपुत्र भीम ने क्रुद्ध हो अपने सुदृढ़ धनुष को बलपूर्वक खींचकर लोहे के सात बाणों द्वारा कलिंगराज श्रुतायु को घायल कर दिया। तत्पश्चात् दो क्षुर नामक बाणों से कलिंगराज के चक्ररक्षक महाबली सत्यदेव तथा सत्य को यमलोक पहुँचा दिया। इसके बाद अमेय आत्मबल से सम्पन्न भीम ने तीन तीखे नाराचों द्वारा रणक्षेत्र में केतुमान को मारकर उसे यमलोक भेज दिया। तब कलिंगदेशीय समस्त क्षत्रियों ने कई हजार सैनिकों के साथ आकर युद्ध के लिये उद्यत हो अमर्षशील भीमसेन को आगे बढ़ने से रोक दिया। राजन्! उस समय कलिंग-योद्धा भीमसेन पर शक्ति, गदा, खंग, तोमर, ऋष्टि तथा फरसों की वर्षा करने लगे। वहाँ होती हुई उस भयंकर बाण-वर्षा को रोककर महाबली भीमसेन हाथ में गदा ले बड़े वेग से कलिंग-सेना में कूद पड़े। उस सेना में घुसकर शत्रुमर्दन भीम ने पहले सात सौ वीरों को यमलोक पहुँचाया। फिर दो हजार कलिंगों को मृत्युलोक में भेज दिया। यह अद्भुत-सी घटना थी। इस प्रकार भीमसेन ने महारथी भीष्म की ओर देखते हुए कलिंगों की सेना को बार बार समर-भूमि में शीघ्रतापूर्वक विदीर्ण किया। उस रणभूमि में पाण्डुनन्दन भीम के द्वारा सवारों के मार दिये जाने पर बहुत-से मतवाले हाथी वायु के थपेडे़ खाये हुए बादलों के समान कौरव सेना में इधर-उधर भागते तथा अपने ही सैनिक को कुचलते हुए बाणों की व्यर्था से व्याकुल हो चीत्कार करने लगे। तदनन्तर महाबली महाबाहु भीमसेन ने खड्ग हाथ में लिये हुए अत्यन्त प्रसन्न हो खडे़ जोर से शंख बजाने लगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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