महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 54 श्लोक 43-62

चतु:पंचाशत्तम (54) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

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महाभारत: भीष्म पर्व: चतु:पंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 43-62 का हिन्दी अनुवाद


फिर दोनों ओर घूम-घूमकर हाथियों को गिराते हुए वे अनेक मार्गों से विचरण करने लगे। उस समय घूमते हुए अलातचक्र की भाँति वे सब ओर दिखायी देते थे। प्रचण्डबल वाले महान् शक्तिशाली भीमसेन शत्रुओं के समूह में घुसकर उसके शरीर और मस्तक काटते हुए बाज पक्षी की तरह रणभूमि में विचरने लगे। उस रण-क्षेत्र में गजारूढ़ होकर युद्ध करने वाले योद्धाओं के मस्तकों को अपनी तीखी धार वाली तलवार से काटते हुए वे अकेले ही क्रोध में भर कर पैदल विचरते और शत्रुओं के भय को बढ़ाते थे। उन्होंने प्रलयकालीन यमराज के समान भयंकर रूप धारण करके उन सबको भय से मोहित कर दिया था। वे मूढ़ सैनिक गर्जना करते हुए उन्हीं के पास दौडे़ चले आते (और मारे जाते) थे। भीमसेन हाथ में तलवार लिये उस महान् संग्राम में बड़े वेग से विचरण करते थे। शत्रुओं का मर्दन करने वाले बलवान भीम युद्ध में रथरोहियों के रथों के ईषादण्ड और जुए काटकर उन रथियों का भी संहार कर डालते थे। उस समय पाण्डुनन्दन भीमसेन अनेक मार्गों पर विचरते हुए दिखायी देते थे। उन्होंने खंग युद्ध के भ्रान्त, अविद्ध, उद्धान्त, आप्लुत, प्रसत, प्लुत, सम्पात तथा समुदीर्ण आदि बहुत से पैंतरे दिखाये।[1]

पाण्डुनन्दन महामना भीमसेन श्रेष्ठ खड्ग की चोट से कितने ही हाथियों के अंग छिन्न-भिन्न हो उनके मर्मस्थल विदीर्ण हो गये और वे चिग्घाड़ते हुए प्राणशून्य होकर धरती पर गिर पड़े। भरतनन्दन! कुछ गजराजों के दांत और सूंड के अग्रभाग कट गये, कुम्भस्थल फट गये और सवार मारे गये। उस अवस्था में उन्होंने इधर-उधर भागकर अपनी ही सेनाओं को कुचल डाला और अन्त में जोर-जोर से चिग्घाड़ते हुए वे पृथ्वी पर गिरे और मर गये। राजन्! हम लोगों ने वहाँ देखा, बहुत से तोमर और महावतों के मस्तक कटकर गिरे, हाथियों की पीठों पर बिछी हुई विचित्र-विचित्र झूलें पड़ी हुई हैं। हाथियों को कसने के उपयोग में आने वाली स्वर्णभूषित चमकीली रस्सियां गिरी हुई हैं, हाथी और घोड़ों के गले के आभूषण, शक्ति, पताका, कणप (अस्त्रविशेष), तरकस, विचित्र यन्त्र, धनुष, चमकीले भिन्दिपाल, तोत्र, अंकुश, भाँति-भाँति घंटे तथा स्वर्णजटित खंग, मुष्टि- ये सब वस्तुएं हाथी सवारोंसहित गिरी हुई हैं और गिरती जा रही हैं। कहीं कटे हुए हाथियों के शरीर के ऊर्ध्व भाग पड़े थे, कहीं अधोभाग पड़े थे। कहीं कटी हुई सूंडे पड़ी थीं और कही मारे गये हाथियों की लोथें पड़ी थीं। उनसे आच्छादित हुई वह समरभूमि ढहे हुए पर्वतों से ढकी-सी जान पड़ती थी।

भारत! इस प्रकार महाबली भीमसेन ने कितने ही बड़े-बड़े गजराजों को नष्ट करके दूसरे प्राणियों का भी विनाश आरम्भ किया। उन्होंने युद्धस्थल में बहुत से प्रमुख अश्वारोहियों को मार गिराया। इस प्रकार भीमसेन और कलिंग सैनिकों का वह युद्ध अत्यन्त घोर रूप धारण करता गया। उस महासमर में घोड़ों की लगाम, जोत, सुवर्णमण्डित चमकीली रस्सियां, पीठ पर कसी जाने वाली गद्दियां (जीन), प्रास, बहुमूल्य ऋष्टियां, कवच, ढाल तथा भाँति-भाँति के विचित्र आस्तरण इधर-उधर बिखरे दिखायी देने लगे। भीमसेन ने बहुत-से प्रासों, विचित्र यंत्रों और चमकीले शस्त्रों से वहाँ की भूमि को पाट दिया, जिससे वह चितकबरे पुष्पों से आच्छादित-सी प्रतीत होने लगी। महाबली पाण्डुनन्दन भीम उछलकर कितने ही रथियों के पास पहुँच जाते और उन्हें पकड़कर ध्वजों सहित तलवार से काट गिराते थे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. तलवार को मण्डलकार घुमाना 'भ्रांत' कहलाता है। यही अधिक परिश्रमसाध्य होने पर 'अविद्ध' कहा गया है। 'भ्रांत' की क्रिया यदि ऊपर उठते हुए की जाय तो उसे 'उदभ्रांत' कहते हैं। तलवार चलाते हुए ऊपर उछलना 'आलुप्त' है। सब दिशाओं में आगे बढ़ना 'प्लुत' है वेग को 'सम्पात' कहते हैं। समस्त शत्रुओं को मारने या चोट पहुँचाने के उद्यम को 'समुदीर्ण कहा गया है।

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