|
महाभारत: द्रोण पर्व: सप्तपंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 1-12 का हिन्दी अनुवाद
राजा पौरव के अद्भुत दान का वृत्तान्त
- नारद जी कहते हैं– सृंजय! हमने वीर राजा पौरव की भी मृत्यु हुई सुनी है, जिन्होंने दस लाख श्वेत घोड़ों का दान किया था। (1)
- उन राजर्षि के अश्वमेध यज्ञ में देश-देश से आये हुए शिक्षाशास्त्र, अक्षर[1] और यज्ञ-विधि के ज्ञाता विद्वानों की गिनती नहीं थी। (2)
- वेदविद्या के अध्ययन का व्रत पूर्ण करके स्नातक बने हुए उदार और प्रियदर्शन पण्डितजन राजा से उत्तम अन्न, वस्त्र, गृह, सुन्दर शय्या, आसन और भोजन पाते थे। (3)
- नित्य उद्योगशील एवं खेल-कूद करने वाले नट, नर्तक और गन्धर्वगण कुक्कुट की-सी आकृति वाले आरती के प्यालों से अपनी कला दिखाकर उक्त विद्वानों का मनोरंजन एवं हर्षवर्द्धन करते रहते थे। (4)
- राजा पौरव प्रत्येक यज्ञ में यथासमय प्रचुर दक्षिणा बाँटते थे। उन्होंने स्वर्ण की-सी कान्ति वाले दस हजार मतवाले हाथी, ध्वजा और पताकाओं सहित सुवर्णमय बहुत-से रथ तथा एक लाख स्वर्णभूषित कन्याओं का दान किया था। (5-6)
- वे कन्याएँ रथ, अश्व एवं हाथियों पर आरूढ़ थीं। उनके साथ ही उन्होंने सौ-सौ घर, क्षेत्र और गौएँ प्रदान की थीं। राजा ने सुवर्ण मालामण्डित विशालकाय एक करोड़ गाय-बैलों और उनके सहस्त्रों अनुचरों को दक्षिणारूप से दान किया था। (7)
- सोने के सींग, चांदी के खुर और कांसे के दुग्धपात्र वाली बहुत-सी बछड़े सहित गौएं तथा दास, दासी, गदहे, ऊँट एवं बकरी और भेड़ आदि भारी संख्या में दान किये। (8)
- उस विशाल यज्ञ में नाना प्रकार के रत्नों तथा भाँति-भाँति के अन्नों के पर्वत-समान ढेर उन्होंने दक्षिणारूप में दिये। (9)
- उस यज्ञ के सम्बन्ध में प्राचीन बातों को जानने वाले लोग इस प्रकार गाथा गाते हैं। (10)
- ‘यजमान अंगनरेश के सभी यज्ञ स्वधर्म के अनुसार प्राप्त और शुभ थे। वे उत्तरोत्तर गुणवान और सम्पूर्ण कामनाओं की सिद्धि करने वाले थे।' (11)
- सृंजय! राजा पौरव धर्म, ज्ञान, वैराग्य और ऐश्वर्य इन चारों बातों में तुमसे बढ़कर थे और तुम्हारे पुत्र से भी अधिक पुण्यात्मा थे। श्वैत्य सृंजय! जब वे भी मर गये, तब तुम यज्ञ और दक्षिणा से रहित अपने पुत्र के लिये शोक न करो। नारद जी ने राजा सृंजय से यही बात कही। (12)
इस प्रकार श्रीमहाभारत के द्रोण पर्व के अन्तर्गत अभिमन्यु वध पर्व में षोडशराजकीयोपाख्यान विषयक सत्तावनवाँ अध्याय पूरा हुआ।
|
|