व्रत

व्रत और उपवास संकल्पपूर्वक किए गए कर्म को 'व्रत' कहते हैं। मनुष्य को पुण्य के आचरण से सुख और पाप के आचरण से दु:ख होता है। संसार का प्रत्येक प्राणी अपने अनुकूल सुख की प्राप्ति और अपने प्रतिकूल दु:ख की निवृत्ति चाहता है। मानव की इस परिस्थिति को अवगत कर त्रिकालज्ञ और परहित में रत ऋषि मुनियों ने वेद, पुराण, स्मृति और समस्त निबंधग्रंथों को आत्मसात कर मानव के कल्याण के हेतु सुख की प्राप्ति तथा दु:ख की निवृत्ति के लिए अनेक उपाय कहे गये हैं। उन्हीं उपायों में से व्रत और उपवास श्रेष्ठ तथा सुगम उपाय हैं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः