पन्चाशदधिकशततम (150) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
महाभारत: अनुशासनपर्व: पन्चाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 47-66 का हिन्दी अनुवाद
महातेजस्वी राजर्षि श्वेत का तथा जिन्होंने सगरपुत्रों को गंगाजल से आप्लावित करके उनका उद्धार किया था, उन महाराज भगीरथ का भी कीर्तन एवं स्मरण करें। वे सभी राजा अग्नि के समान तेजस्वी, अत्यन्त रूपवान, महान बलसम्पन्न, उग्र शरीर वाले परम धीर और अपने कीर्ति को बढ़ाने वाले थे। इन सबका कीर्तन करना चाहिये। देवताओं, ऋषियों तथा पृथ्वी पर शासन करने वाले राजाओं का कीर्तन करना चाहिये। सांख्ययोग, उत्तम हव्य-कव्य तथा समस्त श्रुतियों के आधारभूत परब्रह्म परमात्मा का कीर्तन सम्पूर्ण प्राणियों के लिये मंगलमय परम पावन है। इनके बारंबार कीर्तन से रोगों का नाश होता है। इससे सब कर्मों में उत्तम पुष्टि प्राप्त होती है। भारत! मनुष्य को प्रतिदिन सबेरे ओर शाम के समय शुद्धचित्त होकर भगवत्-कीर्तन के साथ ही उपर्युक्त देवताओं, ऋषियों और राजाओं के भी नाम लेने चाहिये। ये देवता आदि जगत की रक्षा करते, पानी बरसाते, प्रकाश और हवा देते तथा प्रजा की सृष्टि करते हैं। ये ही विघ्नों के राजा विनायक, श्रेष्ठ, दक्ष, क्षमाशील और जितेन्द्रिय हैं। ये महात्मा सब मनुष्यों के पाप-पुण्य के साक्षी हैं। इनका नाम लेने पर ये सब लोग मानवों के अमंगल का नाश करते हैं। जो सबेरे उठकर इनके नाम और गुणों का उच्चारण करता है, उसे शुभ कर्मों के भोग प्राप्त होते हैं। उसके यहाँ आग और चोर का भय नहीं रहता तथा उसका मार्ग कभी रोका नहीं जाता। प्रतिदिन इन देवताओं का कीर्तन करने से मनुष्यों का दुःस्वप्न नष्ट हो जाता है। वह सब पापों से मुक्त होता है और कुशलपूर्वक घर लौटता है। जो द्विज दीक्षा के सभी अवसरों पर नियमपूर्वक इन नामों का पाठ करता है, वह न्यायशील, आत्मनिष्ठ, क्षमावान, जितेन्द्रिय तथा दोष-दृष्टि से रहित होता है। रोग-व्याधि से ग्रस्त मनुष्य इसका पाठ करने पर पापमुक्त एवं नीरोग हो जाता है। जो अपने घर के भीतर इन नामों का पाठ करता है, उसके कुल का कल्याण होता है। खेत में इस नाममाला को पढ़ने वाले मनुष्य की सारी खेती जमती और उपजती है। जो गाँव के भीतर रहकर इस नामावाली का पाठ करता है, यात्रा करते समय उसका मार्ग सकुशल समाप्त होता है। अपनी, पुत्रों की, पत्नी की, धन की तथा बीजों और ओषधियों की भी रक्षा के लिये इस नामावली का प्रयोग करे। युद्धकाल में इन नामों का पाठ करने वाले क्षत्रिय के शत्रु भाग जाते हैं और उसका सब ओर से कल्याण होता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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