चतुर्दश (14) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
महाभारत: अनुशासन पर्व: चतुर्दश अध्याय: श्लोक 307-325 का हिन्दी अनुवाद
जो मेघ के समान गम्भीर नाद करने वाले तथा बहुसंख्यक मायाओं के आधार हैं, जो बीज और क्षेत्र का पालन करते हैं और जगत् की सृष्टि करने वाले हैं, उन भगवान शिव को बारंबार नमस्कार है। आप देवताओं और असुरों के स्वामी हैं। आपको नमस्कार है। आप सम्पूर्ण विश्व के ईश्वर हैं। आपको बारंबार नमस्कार है। आप वायु के समान वेगशाली तथा वायुरूप हैं। आपको नमस्कार है, नमस्कार है। आप सुवर्णमालाधारी तथा पर्वत-मालाओं में विहार करने वाले हैं। देवशत्रुओं के मुण्डों की माला धारण करने वाले प्रचण्ड वेगशाली आपको नमस्कार है, नमस्कार है। ब्रह्मा जी के मस्तक का उच्छेद और महिष का विनाश करने वाले आपको नमस्कार है। आप स्त्रीरूप धारण करने वाले तथा यज्ञ के विध्वंसक हैं। आपको नमस्कार है। असुरों के तीनों पुरों का विनाश और दक्ष-यज्ञ का विध्वंस करने वाले आपको नमस्कार है। काम के शरीर का नाश तथा कालदण्ड को धारण करने वाले आपको नमस्कार है। स्कन्द और विशाखरूप आपको नमस्कार है। ब्रह्मदण्डस्वरूप आपको नमस्कार है। भव (उत्पादक) और शर्व (संहारक) रूप आपको नमस्कार है। विश्वरूपधारी प्रभु को नमस्कार है। आप सबके ईश्वर, संसार-बन्धन का नाश करने वाले तथा अन्धकासुर के घातक हैं। आपको नमस्कार है। आप सम्पूर्ण मायास्वरूप तथा चिन्त्य और अचिन्त्यरूप हैं। आपको नमस्कार है। आप ही हमारी गति हैं, श्रेष्ठ हैं और आप ही हमारे हृदय हैं। आप सम्पूर्ण देवताओं में ब्रह्मा तथा रुद्रों में नीललोहित हैं। आप समस्त प्राणियों में आत्मा और सांख्यशास्त्र में पुरुष कहलाते हैं। आप पवित्रों में ऋषभ तथा योगियों में निष्फल शिवरूप हैं। आप आश्रमियों में गृहस्थ, ईश्वरों में महेश्वर, सम्पूर्ण यक्षों में कुबेर तथा यज्ञों में विष्णु कहलाते हैं। पर्वतों में आप मेरु हैं। नक्षत्रों में चन्द्रमा हैं। ऋषियों में वसिष्ठ हैं तथा ग्रहों में सूर्य कहलाते हैं। आप जंगली पशुओं में सिंह हैं। आप ही परमेश्वर हैं। ग्रामीण पशुओं में आप ही लोक सम्मानित सांड़ हैं। आप ही आदित्यों में विष्णु हैं। वसुओं में अग्नि हैं। पक्षियों में आप विनतानन्दन गरुड़ और सर्पों में अनन्त (शेषनाग) हैा। आप वेदों में सामवेद, यजुर्वेद के मन्त्रों में शतरुद्रिय, योगियों में सनत्कुमार और सांख्यवेत्ताओं में कपिल हैं। देव! आप मरुद्गणों में इन्द्र, पितरों में हव्यवाहन अग्नि, लोकों में ब्रह्मलोक और गतियों में मोक्ष कहलाते हैं। आप समुद्रों में क्षीरसागर, पर्वतों में हिमालय, वर्णों में ब्राह्मण और ब्राह्मणों में भी दीक्षित ब्राह्मण (यज्ञ की दीक्षा लेने वाले) हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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